फर्जी उत्पादन के आंकड़े दर्शा कर राज्य को दिलाते रहे सम्मान
डाॅ. राजेंद्र कुकसाल
चर्चित उद्यान घोटाले में सीबीआई ने बड़ी कार्रवाई करते हुए इस मामले में जांच के लिए कुल 12 टीमों का गठन किया है। साथ ही सम्बन्धितों के ठिकानों पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के नैनीताल, रानीखेत, देहरादून, टिहरी, उत्तरकाशी, चंबा आदि और जम्मू कश्मीर स्थित 30 ठिकानों पर छापे मारी की जहां से सीबीआई की टीमों ने बड़ी संख्या में दस्तावेज व अन्य सामग्री कब्जे में ली है।
घोटाले में पूर्व निदेशक एसएच बवेजा समेत 18 नामजद अधिकारियों और नर्सरियों से जुड़े लोगों के खिलाफ तीन मुकदमे दर्ज किए गए हैं। सीबीआई ने बवेजा समेत इस घोटाले से जुड़े 25 अधिकारियों और अन्य लोगों से लंबी पूछताछ भी की है। जांच में आया है कि अधिकारियों ने नर्सरी एक्ट के नियमों को ताक पर रखकर नर्सरी के लाइसेंस दिए। इसके अलावा फलदार पौधों के रेट भी अन्य राज्यों से अधिक दिए गए। यही नहीं गलत तरीके से बनाई गई नर्सरी को धोखाधड़ी कर करोड़ों की सब्सिडी भी जारी कर दी गई। मामले में सीबीआई ने कई जिलों के उद्यान अधिकारियों को भी नामजद किया है। सीबीआई की ओर से उद्यान घोटाले के आरोपीयों के खिलाफ धोखाधड़ी (धारा-420) समेत विभिन्न आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है इसमें मुख्य रूप से सबूत मिटाना या झूठी गवाही, जालसाजी, जाली दस्तावेजों का प्रयोग शामिल है।
उद्यान घोटाला उजागर करने में सामाजिक कार्यकर्ता दीपक करगेती की अहम भूमिका रही। चौबटिया स्थित उद्यान निदेशालय में निदेशक के न बैठने पर दीपक ने 16 अप्रैल 2022 को तालाबंदी के साथ आंदोलन की शुरुआत की थी। फिर उद्यान विभाग की योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध निदेशालय में दो दिन का क्रमिक अनशन किया और चौबटिया से गैरसैंण तक बाइक रैली भी निकाली। 28 जून 2022 को मंत्री गणेश जोशी और 30 जून को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन दिए जब कोई सुनवाई नहीं हुई फिर देहरादून के गांधी पार्क में एक सितंबर 2022 से 13 दिन के आमरण अनशन पर बैठे जिसमें कई सामाजिक संगठनों, सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों ने दीपक का साथ दिया। जनता के दबाव में सरकार ने जांच के आदेश दिए किन्तु परिणाम कुछ नहीं। जब सरकार से न्याय की कोई उम्मीद नहीं रही, तब दीपक इसके बाद शीतकालीन फल पौध खरीद, 2022 चुनाव से ठीक पहले सेब, मशरूम, सब्जी, मसाले और मौन पालन महोत्सवों में हुई अदरक बीज खरीद, टपक सिंचाई पद्धति में अनियमितताएं आदि पर हाईकोर्ट में पी आइ एल दायर करते रहे। उद्यान लगाओ एवं उद्यान बचाओ ग्रुप व पंजीकृत कृषक बागवान उद्यमी संगठन के सदस्यों ने भी इस मुहिम में पूरा साथ दिया, इसका नतीजा सीबीआई जांच के रूप में सामने आया।
योजनाओं के क्रियान्वयन में नहीं किया जाता रहा है नियमों व शासनादेशों का अनुपालन
प्रधानमंत्री मोदी जी ने वर्ष 2016 में किसानों की आय वर्ष 2022-23 तक दुगनी करने का संकल्प लिया, किसानों की आय दोगुनी (डबलिंग फारर्मस इनकम DFI) करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु किसानों के हित में केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के लिए वर्ष 2017 में कई कृषक कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएं की गई।
1.प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) ।
2.बागवानी मिशन की योजना।
3.परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई)।
4.फार्म मशीनीकरण योजना,आदि।
केन्द्र सरकार की इन योजनाओं में राज्य के कृषकों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से हजारों हजार करोड़ बजट का प्रावधान रखा गया। भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन, नई दिल्ली 28 फरवरी, 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी. वी. टी. के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये। उत्तर प्रदेश, हिमाचल आदि सभी भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में वर्ष 2017 से ही कृषकों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान डी. बी. टी. के माध्यम से सीधे कृषकों के खाते में जा रहा है।
उत्तराखंड में, भारत सरकार के वर्ष 2017 के निर्देश के पांच साल बाद कृषि सचिव उत्तराखंड शासन के पत्रांक 535X11-2/2021-5(28/2014) दिनांक 17 मई 2021 से राज्य के कृषकों को देय अनुदान आधारित योजनाओं को डी.बी.टी. द्वारा क्रियान्वयन के आदेश निर्गत किए गये, उक्त शासनादेश के साथ उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल सरकार के शासनादेशों को संलग्न कर इस आशय से प्रेषित किया गया है कि उन्हीं के अनुरूप उत्तराखंड में भी डी.बी.टी. लागू की जाय। विभागों द्वारा अभी भी इस शासनादेश का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।
उत्तराखण्ड में विभागों के मुखिया भ्रष्टाचार में संलिप्तता के कारण, राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों, छोटी जोत, किसानों की आर्थिक स्थिति अच्छी न होना व अभी पोर्टल बन रहा है का बहाना बना कर डी.बी.टी. लागू नहीं होने दे रहे हैं।
शासन द्वारा जारी औद्यानिक कैलेण्डर का नहीं होता अनुपालन
कृषकों/बागवानों को उचित समय पर गुणवत्ता युक्त निवेश यथा फल पौध, सब्जी बीज, मसाला बीज/पौध, पुष्प रोपण सामग्री/बीज कीट व्याधिनाशक रसायन आदि उपलब्ध कराये जाने के उद्देश्य से उत्तराखंड सरकार ने शासनादेश संख्याः 1633/XVI-1/13/5/16/2013 देहरादूनः दिनांक 26 जुलाई, 2013 द्वारा औद्यानिक कैलेण्डर जारी किया है जिससे कृषकों को समय पर गुणवत्ता वाले निवेश मिल सकें। किन्तु इस कलैंडर का कभी भी उनुपालन नहीं किया गया।
भारत सरकार की हार्टिकल्चर टैक्नोलाॅजी मिशन योजना व अन्य योजनाओं की गाइडलाइंस के अनुसार योजनाओं में क्रय किए जाने वाला बीज, फल पौध आदि निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय से क्रय कर कृषकों को बीज उपलब्ध कराने के निर्देश है जिनसे आने वाले समय में कृषक स्वयं बीज उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन सके।
शासनादेशों का अनुपालन नहीं किया जाता। दलालों के चक्कर में निदेशालय द्वारा निवेशों के खरीद की प्रक्रिया वित्तीय वर्ष के अन्तिम माहों में शुरू की जाती है जिससे शासन-प्रशासन पर दबाव बनाकर चहेतों को लाभ पहुंचाया जा सके। अधिकतर निवेश कमिशन के चक्कर Expression of Interest (EOI) के नाम पर चहेती निजी कम्पनियों या दलालों के माध्यम से ही क्रय किए जाते हैं।
उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 का नहीं हो रहा अनुपालन
उत्तर प्रदेश फल नर्सरी (विनियमन) अधिनियम, 1976 में कुछ संशोधन कर राज्य का अपना उत्तराखंड फल पौधशाला (विनिमयन) नियमावली 2021 प्रभावी हो गया है, इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य यहां की जलवायु के अनुरूप रोग रहित उच्च गुणवत्ता के पौधों का उत्पादन कर बागवानों को उपलब्ध कराना था किन्तु इस एक्ट का अनुपालन नहीं किया जाता। योजनाओं में फल पौधों की आपूर्ति राज्य की पंजीकृत नर्सरियों से होना दर्शाया जाता है किन्तु वास्तविकता यही है कि अधिकतर निम्न स्तर की शीतकालीन फलपौध हिमाचल व कश्मीर तथा वर्षाकालीन फल पौध सहारनपुर या मलीहाबाद लखनऊ की व्यक्तिगत नर्सरियों से ही होती है जिनकी खरीद राज्य की पंजीकृत पौधशालाओं से दिखाया जाता है।
उद्यान विकास से ही इस पहाड़ी राज्य का आर्थिक विकास संभव है इसी निमित्त भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के कार्य काल में पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का सपना देखा व उसे वास्तविक रूप से धरातल पर उतारने के लिये रानीखेत में सन् 1953 में माल रोड़ रानीखेत (अल्मोड़ा) में किराए के भवनों में उद्यान विभाग का निदेशालय फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत की स्थापना की। डाॅ. विक्टर साने इसके पहले निदेशक बने लम्बे समय तक समस्त उत्तर प्रदेश का उद्यान निदेशालय रानीखेत रहा। सन् 1988 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्यान निदेशालय का भवन चैबटिया में बनाने का निर्णय लिया और सन् 1992 में उद्यान भवन चैबटिया रानीखेत में बन कर तैयार हुआ। वर्ष 1990 में निदेशालय का नाम ष्उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेशष् कर दिया गया। राज्य बनने से पूर्व उद्यान निदेशालय, उद्यान भवन, चैबटिया रानीखेत से संचालित होता था। राज्य बनने के बाद धीरे-धीरे सभी वरिष्ठ अधिकारियों के पद देहरादून सम्बन्ध कर दिए गए। निदेशालय को पूरी तरह सर्किट हाउस देहरादून सिफ्ट करने के प्रयास कार्यवाहक निदेशकों द्वारा समय समय पर किए जाते रहे हैं।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि अपने राज्य की सरकारें पुरखौ के रखे राज्य में उद्यान विकास की आधारशिला को यहां के बागवानों के हित में उन्नति के पथ पर आगे बढाएंगे लेकिन आज उद्यान विकास की पुरखौती की रखी यही आधार शिला बन्द होने के कगार पर है। विडम्बना देखिये राज्य बने चैबीस वर्षों में भी उद्यान विभाग को स्थाई निदेशक नहीं मिला राज्य बनने से अबतक 14 से अधिक कार्य वाहक निदेशक एक या दो वर्षों के लिए बने जो अपना सेवा विस्तार बढ़ाने के चक्कर में हुक्मरानों को खुश करने में ही रहे, उसी का दुषपरिणाम है कि आज अधिकतर आलू फार्म, औद्यानिक फार्म, फल शोध केंद्र बन्द हो चुके हैं या बन्द होने के कगार पर है ।
एक समय था जब उद्यान विभाग फल पौध, सब्जी बीज, आलू बीज के उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि उच्च गुणवत्ता के सेब आड़ू प्लम खुमानी, नाशपाती की फल पौध अन्य राज्यों को भी देता था वर्तमान में पहाड़ी जनपदों की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों विभाग की उपेक्षा के कारण समाप्त हो रही है। सेब ग्राफ्ट बांधने हेतु ऊँचे दामों पर सेब के बीजू पौधे भी राज्य की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों की अनदेखी कर कश्मीर से मंगाये जा रहे हैं। हद तो तब हो गई जब ग्राफ्ट बांधने हेतु मजदूर भी कश्मीर से बुलाये जा रहे हैं।
योजनाओं में कृषकों को निवेशों पर मिलने वाला अनुदान डीबीटी के माध्यम से कृषकों के खाते में डालने के बजाय अधिकतर निम्न स्तर के निवेश उच्च दामों में निजि कम्पनियों या दलालों के माध्यम से अन्य राज्यों से क्रय कर कृषकों को बांटे जा रहे हैं। योजनाओं द्वारा राज्य केकृकृषकों को आत्मनिर्भर बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।
उद्यान विभाग का घोटालों से पुराना नाता रहा है जो बदस्तूर जारी है। विगत वर्षों में कई घोटाले उजागर हुए सूखा राहत, मटेला कोल्ड स्टोरेज घोटाला जो बेनी प्रकरण के नाम से चर्चित रहा, सब्जी बीज घोटाला, पाॅली हाउस घोटाला, अदरक बीज घोटाला, लहसुन बीज घोटाला आदि इस सब घोटालों की जांच हुई अनियमिताएं पाई गई कार्रवाई के नाम पर एक दो अधिकारी कर्मचारीयों को कुछ समय के लिये निलंबित भी किये गये किन्तु बाद में सभी को दोषमुक्त करते हुए फूल माला पहनाकर समय पर सेवा निवृत्त कर दिया गया।
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या इसमें लिप्त शासन-प्रशासन के बड़े अधिकारियों पर भी कार्रवाई होगी ये तो कुछ समय बाद ही पता चल पाएगा कि किस पर कार्रवाई होती है या नहीं। विभाग में फलदार पौधों की खरीद में हुए घोटाले ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की कितनी आवश्यकता है। उच्च न्यायालय और सीबीआई की सख्ती से यह उम्मीद की जा सकती है कि दोषियों को सजा मिलेगी और इस प्रकार के घोटाले भविष्य में नहीं होंगे। याचिकाकर्ताओं की सतर्कता और न्यायालय की सख्ती ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर किया है, जिससे जनता का सरकारी तंत्र में विश्वास बना रह सके।