नंदा देवी पार्क प्रशासन तैयारियों में जुटा
उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान 01 जून से पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। हर साल गर्मियों की शुरुआत के साथ ही यह घाटी रंग-बिरंगे दुर्लभ फूलों की चादर ओढ़ लेती है, जो पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
इस वर्ष भी देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानियों के पहुंचने की उम्मीद है। घाटी में पर्यटकों के आने से जहां क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा, वहीं नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व के अंतर्गत आने वाले पार्क प्रशासन को भी अच्छा राजस्व प्राप्त होता है।
इससे पहले, पार्क प्रशासन घाटी तक पहुंचने वाले मार्गों को दुरुस्त करने और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने में जुट गया है। बारिश और बर्फबारी के कारण क्षतिग्रस्त हुए रास्तों की मरम्मत की जा रही है। साथ ही पर्यटकों की सुविधा के लिए आवश्यक संकेतक, विश्राम स्थल और प्राथमिक चिकित्सा व्यवस्था भी सुनिश्चित की जा रही है।
फूलों की घाटी का इतिहास और महत्व
फूलों की घाटी का इतिहास 1931 में अंग्रेज पर्वतारोही फ्रैंक स्मिथ की खोज से जुड़ा है। अपनी पर्वतारोहण यात्रा के दौरान फ्रैंक जब इस घाटी में पहुंचे, तो उन्होंने पहली बार इसे ‘Valley of Flowers’ नाम दिया।
बाद में भारत सरकार ने इस क्षेत्र की जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से इसे 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। इसके बाद, 2005 में यूनेस्को ने फूलों की घाटी को विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया।
घाटी की विशेषताएं
करीब 87.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली फूलों की घाटी समुद्र तल से लगभग 3,658 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
यहाँ पाए जाने वाले सैकड़ों प्रकार के दुर्लभ अल्पाइन फूल, जैसे ब्राह्मकमल, ब्लू पॉपी, कोबरा लिली, प्रिमुला, आदि, घाटी को अद्वितीय बनाते हैं। साथ ही यहां हिमालयी भालू, स्नो लेपर्ड, लाल लोमड़ी, और विभिन्न पक्षियों की प्रजातियां भी देखी जा सकती हैं, जो इसे जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध बनाती हैं।
घाटी तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को गोविंदघाट से शुरू होकर घांघरिया गांव तक की 13 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होती है, जिसके बाद 4-5 किलोमीटर का मार्ग घाटी तक ले जाता है। पर्यटकों के ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था मुख्यतः घांघरिया में उपलब्ध होती है।