केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि मंदिरों में पुजारी की नियुक्ति केवल किसी विशेष जाति या वंश से संबंधित व्यक्तियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। यह फैसला संविधान के समानता और धर्म की स्वतंत्रता के सिद्धांतों के अनुरूप है।
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अखिल केरल थंथ्री समाजम (AKTS), जो पारंपरिक थंथ्री परिवारों का एक संगठन है, ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
उनका कहना था कि मंदिरों में पुजारी की नियुक्ति केवल उन्हीं व्यक्तियों को की जानी चाहिए जो पारंपरिक थंथ्री परिवारों से आते हैं। उनका तर्क था कि यह धार्मिक परंपरा और शास्त्रों के अनुसार है।
केरल हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि:
- पुजारी की नियुक्ति एक प्रशासनिक कार्य है, न कि धार्मिक अनिवार्य प्रथा।
- जाति या वंश आधारित नियुक्ति को धार्मिक अनिवार्य प्रथा के रूप में नहीं माना जा सकता।
- संविधान के तहत समानता और धर्म की स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई परंपरा संविधान के खिलाफ है, तो उसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि अब मंदिरों में पुजारी बनने के लिए जाति या वंश की कोई बाध्यता नहीं होगी। योग्यता और प्रशिक्षण ही मुख्य मानक होंगे।
इससे समाज में समानता की भावना को बढ़ावा मिलेगा और धार्मिक संस्थाओं में पारदर्शिता और समावेशिता सुनिश्चित होगी।
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