फैसला देखकर निराश बोलीं — “ये इंसाफ नहीं”
32 वर्षीय ट्रांस महिला जेन कौशिक को अपनी जेंडर पहचान की वजह से दो बार नौकरी से हाथ धोना पड़ा। स्कूल टीचर के तौर पर पूरी योग्यता होने के बावजूद उन्हें प्राइवेट स्कूलों ने काम से निकाल दिया।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां कोर्ट ने जेन को राहत देते हुए दोनों स्कूलों और राज्य सरकारों को उन्हें मुआवजा देने का आदेश दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक, मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली जेन को साल 2022 और 2023 के बीच उत्तर प्रदेश और गुजरात के निजी स्कूलों में नौकरी छोड़नी पड़ी।
दोनों बार स्कूल प्रबंधन ने उनकी ट्रांसजेंडर पहचान को लेकर आपत्ति जताई। जेन ने भेदभाव की शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-प्राइवेट संस्थानों को भेदभाव की अनुमति नहीं
17 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि निजी संस्थानों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव करने की अनुमति नहीं है।
कोर्ट ने यूपी और गुजरात के संबंधित स्कूलों तथा राज्य सरकारों को आदेश दिया कि वे जेन को 50-50 हजार रुपये का मुआवजा दें।
साथ ही अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि तीन महीने के भीतर एक एडवाइजरी कमेटी गठित की जाए, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों के क्रियान्वयन पर नजर रखेगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सभी राज्यों को समान अवसर (Equal Opportunity) नीति तैयार करनी होगी।
जेन ने कहा- “यह मुआवजा न्याय नहीं”
फैसले के बाद भी जेन कौशिक इस राहत से खुश नहीं हैं। उनका कहना है कि यह मुआवजा बहुत कम है और उनके साथ हुए नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।
“मुझे यूपी के स्कूल में 45 हजार रुपये वेतन मिल रहा था। आठ महीने तक बेरोजगार रहने के बाद 2023 में गुजरात के एक स्कूल से ऑफर मिला।
लेकिन जैसे ही स्कूल को मेरी ट्रांस पहचान के बारे में पता चला, उन्होंने मुझे कैंपस में घुसने तक नहीं दिया।
अगर मुझे नौकरी छोड़ने पर मजबूर नहीं किया जाता तो मैं लाखों रुपये कमा चुकी होती। यह मुआवजा गुजारा भर के लिए भी काफी नहीं है।”
घर छोड़ा, सड़कों पर गुजारी रातें
जेन ने बताया कि 2018 में उन्होंने पहली बार अपने परिवार को अपनी ट्रांसजेंडर पहचान के बारे में बताया था। परिवार ने उस समय उनका साथ दिया और यहां तक कि जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी में भी सहयोग किया।
लेकिन लगातार नौकरी न मिलने और आर्थिक तंगी के चलते घर का माहौल बिगड़ गया, जिसके बाद उन्हें घर छोड़ना पड़ा।
इस दौरान उन्होंने सड़कों पर दिन गुजारे, भीख मांगी, और कभी-कभी सेक्स वर्कर के तौर पर भी काम करने को मजबूर हुईं।
फिलहाल जेन हैदराबाद के एक स्कूल में शिक्षक के रूप में काम कर रही हैं, लेकिन अपनी जेंडर पहचान छिपाकर। स्कूल ने उन्हें यही शर्त दी थी।
जेन चाहती हैं कि उन्हें दिल्ली-एनसीआर में नौकरी मिले, लेकिन अब तक कोई अवसर नहीं मिला।
जेन का कहना है कि ट्रांस समुदाय की असली समस्या राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता है।
“जब तक नेता और अधिकारी समुदाय के साथ सीधे जुड़कर काम नहीं करेंगे, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। हमें केवल कानून नहीं, व्यवहार में समानता चाहिए।”

















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