उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों में वर्षों से कार्यरत 417 शिक्षकों के विनियमतीकरण (स्थायीकरण) को मंजूरी दे दी है।
यह फैसला “उत्तराखंड राज्य बनाम माया नेगी व अन्य” मामले में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की संयुक्त पीठ ने सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
राज्य के विभिन्न अशासकीय सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत शिक्षक वर्षों से विनियमतीकरण की मांग कर रहे थे। वर्ष 2015 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने आदेश दिया था कि पीटीए शिक्षकों की नियुक्ति वैध नहीं है और उनके स्थान पर सीधी भर्ती की जानी चाहिए। इसके खिलाफ राज्य सरकार और शिक्षकों ने अपील की।
2017 में सरकार ने अधिनियम में संशोधन कर ऐसे शिक्षकों को तदर्थ नियुक्त कर ₹15,000 मानदेय देना शुरू किया, लेकिन नियमितीकरण की दिशा में कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया।
न्यायालय का निर्णय
संयुक्त पीठ ने स्पष्ट किया कि लंबे समय से सेवा दे रहे तदर्थ शिक्षकों को हटाना अन्याय होगा। यदि वे योग्यता, अनुभव और नियमों के अनुरूप हैं तो उन्हें स्थायी किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीटीए शिक्षक भी अधिनियम और शासनादेशों के अनुरूप कार्यरत रहे हैं, इसलिए उन्हें विनियमित करना न्यायसंगत है।
उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष मेजर स्वतंत्र मिश्रा, महासचिव जगमोहन रावत, और पौड़ी जिलाध्यक्ष डॉ. महावीर सिंह विष्ट ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह शिक्षकों की वर्षों की मेहनत और संघर्ष का सम्मान है।
तदर्थ शिक्षक संघ के अध्यक्ष संदीप रावत और संरक्षक जनार्दन जोशी ने भी इस फैसले को ऐतिहासिक बताया।
हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल 417 शिक्षकों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि प्रदेश के अन्य तदर्थ कर्मचारियों के लिए भी एक मिसाल बन गया है। यह निर्णय बताता है कि न्याय व्यवस्था सबके अधिकारों की रक्षा में खड़ी है।
