कवि कन्हैया लाल डंडरियाल को दी श्रद्धांजलि

कवि कन्हैया लाल डंडरियाल पहाड़ की संवेदनाओं के कवि थे : चारु तिवारी

रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो

           उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच के तत्वावधान में गढ़वाल हितैषणी सभा भवन , दिल्ली में गढ़वाली के सुप्रसिद्ध कवि कन्हैयालाल डंडरियाल की 20 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया।
डंडरियाल जी की पुण्यतिथि पर सर्वप्रथम महाकवि कन्हैयालाल डंडरियाल को पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके उपरांत उत्तराखंड के सृजनरत् साहित्यकारों ने डंडरियाल जी के कृतित्व व व्यक्तित्व पर  परिचर्चा की गई।
डंडरियाल जी की पुण्यतिथि पर आयोजित इस  परिचर्चा का आरंभ वरिष्ठ रंगकर्मी दर्शन सिंह रावत ने कन्हैयालाल डंडरियाल जी के संक्षिप्त परिचय से की।

वरिष्ठ उपन्यासकार रमेश घिल्डियाल ने डंडरियाल से जुड़े संस्मरण सुनाए और उनकी कृतियों ‘मंगतू’, ‘कुयेड़ी’, नागरजा, अंज्वाळ आदि का जिक्र किया। अपने वकतव्य मे गढ़वाल हितैषणी सभा के अध्यक्ष अजय बिष्ट ने कहा कि अपने पुराने साहित्यकारों को याद करना बहुत जरूरी है।इससे नई पीढ़ी अपने इन महान साहित्य मनीषियों के बारे में जान पायेगी।


गढ़वाली भाषा-साहित्य का गहन अध्येता और कन्हैयालाल डंडरियाल जी के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाश में लाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील युवा कवि आशीष सुंदरियाल ने डंडरियाल जी के उपन्यास ‘रुद्री’ और ‘बागि-उप्पनै लड़ै’ पर विस्तार से चर्चा की, और इन कृतियों को देश व विदेश की अन्य भाषाओं की उत्कृष्ट पुस्तकों के समक्ष बताया। इसके बाद डंडरियाल जी के पुत्र हरिकृष्ण डंडरियाल ने अपने पिताजी से जुड़े संस्मरणों को साझा किया।

https://youtu.be/sLJqKTQoUYs?si=0o6qNYEZ4pFspASG


अपने विचार व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार चारू तिवारी ने लोकभाषा में लिखे साहित्य के अनुवाद करने की आवश्यकता पर जोर दिया।  साहित्यकार  सुशील बुडा़कोटी ने  नागरजा महाकाव्य पर अपनी बात रखी।  गढ़वाली और कुमाऊंनी मे निरन्तर सृजनशील लेखक रमेश हितैषी ने डंडरियाल जी के खण्डकाव्य ‘बागि-उप्पनै लड़ै’ को वर्तमान मे भी प्रासंगिक बताया।


कार्यक्रम में उपस्थित कवियों और श्रोताओं ने भी डंडरियाल जी की चुनिंदा कविताओं का  का पाठ किया। इस अवसर पर उमेश चंद्र बंदूणी, बृजमोहन वेदवाल, प्रतिबिंब बड़थ्वाल, गोविंद पोखरियाल, अनूप रावत, वीरेंद्र जुयाल, सतेन्द्र रावत द्वारिका चमोली, जगमोहन रावत’ जगमोरा, डा कुसुम भट्ट, निर्मला नेगी एवं अनिल पंत उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच के संयोजक दिनेश ध्यानी ने किया।

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