नियम 36 के उल्लंघन पर होगी सख्त कार्रवाई
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने देशभर के वकीलों और लॉ फर्मों को कानूनी सेवाओं का विज्ञापन करने से सख्ती से मना किया है। हाल ही में BCI ने मुंबई की जानी-मानी लॉ फर्म ‘DSK Legal’ को सीधा नोटिस भेजकर उनके द्वारा प्रकाशित किए गए प्रचारात्मक विज्ञापन को तुरंत हटाने का आदेश दिया है।
इस विज्ञापन में फर्म ने अपनी सेवाओं का खुले तौर पर प्रचार किया था, जिसे BCI ने “अनैतिक” और “नियम 36 का उल्लंघन” करार दिया।
कोई बात नहीं, मैं आपको DSK Legal से जुड़ी पूरी खबर का सारांश नीचे सादा टेक्स्ट में दे रहा हूँ जिसे आप आसानी से कॉपी कर सकती हैं:
DSK Legal को बार काउंसिल का नोटिस
बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने जानी-मानी लॉ फर्म DSK Legal को एक शोकॉज़ नोटिस (Show Cause Notice) जारी किया है।
यह नोटिस फर्म द्वारा अपनी 20वीं वर्षगांठ के मौके पर जारी किए गए एक प्रचारात्मक वीडियो को लेकर भेजा गया है, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता राहुल बोस नजर आ रहे हैं।
BCI का आरोप है कि यह वीडियो BCI के नियम 36 का उल्लंघन करता है, जो वकीलों को किसी भी प्रकार का प्रचार या विज्ञापन करने से रोकता है।
वीडियो में DSK Legal की सेवाओं की सराहना की गई है और इसे एक तरह से “ब्रांड प्रमोशन” की शैली में प्रस्तुत किया गया है।
BCI ने निर्देश दिया है:
- यह वीडियो और संबंधित प्रचार सामग्री तुरंत हटाई जाए।
- हटाने का प्रमाण (डॉक्युमेंटेशन) BCI को सौंपा जाए।
- 10 दिनों के भीतर लिखित जवाब देकर यह स्पष्ट किया जाए कि फर्म के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए।
- BCI ने यह भी कहा कि इस तरह का प्रचार कानून पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
क्या है BCI का नियम 36?
“कोई अधिवक्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कार्य के लिए विज्ञापन, प्रचार, दलालों, गैर-आवश्यक साक्षात्कार, सोशल मीडिया या अन्य किसी भी माध्यम से काम नहीं मांग सकता।” इसका सीधा अर्थ है कि कोई भी वकील या लॉ फर्म अपने काम को बेचने की तरह पेश नहीं कर सकती।
2008 में मिली थी सीमित छूट
2008 में बार काउंसिल ने वकीलों को अपनी वेबसाइट पर सीमित जानकारी देने की अनुमति दी थी, जिसमें नाम, पता, संपर्क, अनुभव, विशेषज्ञता को साझा कर सकते हैं, परंतु इसका भी उपयोग विज्ञापन के रूप में नहीं किया जा सकता।
क्या हो सकती है कार्रवाई?
BCI ने स्पष्ट किया है कि नियमों का उल्लंघन करने वाले वकीलों और फर्मों के खिलाफ अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 35 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसमें उनका पंजीकरण निलंबित या रद्द तक किया जा सकता है।