पुरानी टिहरी झील में डूबे राजमहल को देख लोगों की यादें ताजा रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
टिहरी झील का जलस्तर घटते ही पुरानी टिहरी का खंडहर राजमहल दिखने लगा है, जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है। टिहरी झील में डूबे राजमहल को देख लोगों की यादें ताजा हो जाती है। देहरादून में बसे टिहरी के वासी आज इस यादगार दृश्य को देखने के लिए टिहरी पहुंचे। इसे देखकर आज भी लोगों की आंखें भर आई।
खंडर पड़े राजमहल और पुरानी टिहरी को देख भीड़ हुई भावुक
टिहरी झील का जलस्तर कम होने से जब पुरानी टिहरी दिखाई देती है तो लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। उन्होंने कहा पुरानी टिहरी स्वर्ग थी, जो किसी भी देश में नहीं है। स्थानीय लोगों ने कहा जब टिहरी झील का पानी कम होता है तब पर्यटन विभाग, जिला प्रशासन को राजमहल तक जाने के लिए नाव लगानी चाहिये। जिससे लोग राजमहल तक जा सकें। उन्होंने कहा ऐसा करने से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। साथ ही लोग गढ़वाल की ऐतिहासिक शैली देख सकेंगे।
टिहरी इतिहास
टिहरी को पहले त्रिहरी कहते थे। इस स्थान पर ब्रह्मा, बिष्णु, महेश त्रिदेव स्नान करने आते थे। इस लिये इसे त्रिहरी कहते थे। 28 दिसंबर 1815 ई. को सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी नगर में स्थापित की। इसके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों भवानी शाह (1859-1871), प्रताप शाह (1871-1886), कीर्ति शाह (1887-1913) तथा नरेंद्र शाह (1913-1946) ने अपनी राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर एवं नरेंद नगर में स्थापित की। इनके वंशजों ने इस क्षेत्र में 1815 से 1949 तक शासन किया अंतिम राजा मानवेन्द्र शाह (1946-1949) थे।
सन 1949 में टिहरी रियासत का उत्तर प्रदेश में विलय हो गया। एक बिखरा हुआ क्षेत्र होने के कारण इसके विकास में समस्यायें थी परिणाम स्वरुप 24 फरवरी 1960 को उत्तर प्रदेश ने टिहरी की एक तहसील को अलग कर एक नए जिले उत्तरकाशी का नाम दिया।
टिहरी बांध विरोध वर्ष 1965 में तत्कालीन केंद्रीय एवं सिंचाई मंत्री के.एल. राव ने टिहरी में भागीरथी और भिलंगना नदी पर बांध बनाने की घोषणा की थी। बांध विरोध में कई समितियां बनी परंतु 29 जुलाई 2005 को टिहरी शहर में पानी घुसने लगा। जिसके बाद 100 से अधिक गांवों और उनमें रहने वाले परिवारों को शहर छोड़ना पड़ा और 31 जुलाई 2005 जिसे टिहरी के लोग अपने लिए काला दिन भी कहते हैं। इस दिन पुरानी टिहरी झील में समा गई जिसके बाद हजारों लोग बेघर हो गए। उन बेघर लोगों को नई टिहरी, हरिद्वार, ऋषिकेश आदि जगहों पर बसाया गया।
भले ही आज टिहरी झील कई घरों को रोशन कर रहा हो मगर कभी यह बांध टिहरी के लोगों की रिश्ते, नाते, खुशियां और कई यादों के साथ उनके खेत खलियान उनके देवी-देवताओं के थान एवं उनके और टिहरी से जुड़ी तमाम यादों को ले गया।
भले ही समय के साथ टिहरी के लोग भी आगे बढ़ गए परन्तु कभी उनके पूर्वजों ने इस डैम के निर्माण को रोकने के लिए कई दिनों तक खाना तक नहीं खाया था और हर देवता के द्वार पर हाथ तक जोड़े थे कि ये डैम ना बने। आज भी टिहरी के लोग 200 वर्ष पूर्व में बसे और 18 साल पहले डूबे अपने इस टिहरी शहर को याद करके रोते हैं। उनकी पीड़ा को इस समय महसूस किया जा सकता है जब वो आज भी टिहरी डूबने के नाम सुनकर भावुक हो जाते हैं।
आज भी टिहरी के लोग अपनी पुरानी टिहरी की एक झलक पाने के लिए तरसते हैं। वह कहते हैं कि टिहरी उनके दिलों में हमेशा रहेगा और टिहरी ने जनहित और देशहित के लिए जल समाधि ली है इस बात का उन्हें गर्व रहेगा। भले आज पुरानी टिहरी की जगह नई टिहरी तो बस गया पर लोगों के दिलों में जो छाप पुरानी टिहरी ने छोड़ी थी। वह शायद ही कोई और छोड़ पाएगा।