‘खालिद की खाला’ नाटक से हुआ दर्शकों का भरपूर मनोरंजन
गोविंदा अभिनीत आंटी नं 1 की कहानी पर आधारित नाटक
श्रीनगर! जश्ने विरासत 2024 की पहली शाम कलाकारों के उम्दा प्रदर्शन से खासमखास बन गई। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि के मिनी ऑडिटोरियम में दर्शकों से खचाखच भरे हॉल में दर्शक बस गुदगुदाते नजर आए। वरूण शर्मा निर्देशित नाटक खालिद की खाला में दर्शक जितने उत्साह के पहुंचे थे, कलाकारों ने भी अपनी भरपूर ऊर्जा से पूरे एक घंटे तक उनका मनोरंजन किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी ने रिबिन काटकर तथा दीप प्रज्वलित कर किया। अध्यक्षता प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी तथा गढ़वाल विवि में लोक कला निष्पादन केंद्र के प्रणेता प्रो.डीआर पुरोहित ने की।
श्रीनगर क्षेत्र में रंगकर्म प्रेमियों की पहल पर आयोजित सातवें जश्ने विरासत की शाम देखने लायक रही। ठीक पांच बजे मुख्य अतिथि का आगमन हुआ, जिनका भव्य स्वागत पारंपरिक वाद्य यंत्रों के बीच पारंपरिक तरीके से ही हुआ। हाउस फुल शो के लिए पास लेकर पहुंची दर्शकों की भीड़ इस मौके पर गवाह बनी।
बिना किसी औपचारिकता के ठीक पांच बजकर 16 मिनट पर नाटक शुरू हुआ। चुटीले संवादों तथा मनोरंजक दृश्यों को कलाकारों की कला ने बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। दूसरे शब्दों में कहें, तो खालिद की खाला नाटक कलाकार
नुसरत बनी नम्रता, खालिद की भूमिका में संभव गुप्ता, सुरैया की भूमिका दिव्या पटेल, अहमद राहुल, रूकसाना सिमरन, बेगम की भूमिका में हस्मिता, फकीरा चैतन्य तथा सत्येन ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया और दर्शकों को खूब हॅंसाया। बाबा खान की भूमिका निभा रहे मानस राज ने जबरदस्त रंगमंचीय प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया।
नाटक का कथानक
नाटक का कथानक गोविंदा अभिनीत बॉलीवुड की फिल्म आंटी नं 1 की ही कहानी है, जिसमें खालिद और अहमद दो दोस्त हैं। इन दोनों को जिन लड़कियों से प्रेम है, वो दोनों चचेरी बहनें नुसरत तथा सुरैया हैं। सुरैया की जिम्मेदारी भी नुसरत के पिता ही देखते हैं। अहमद के पिता तथा नुसरत के पिता दोनों ही आशिक मिजाज हैं, जिनका मन खालिद और अहमद के साथी बाबा खान पर आ जाता है। बाबा खान का काम ही अभिनय है, सो वह अपने दोनों साथियों के प्रेम के लिए बलि का बकरा बनने के लिए तैयार हो जाता है और इंडोनेशिया से भारत पहुंच रही खालिद की खाला बन जाता है।
जब मुख्य अतिथि ने कहा- मेरी तबियत खराब है
मुख्य अतिथि विधायक विनोद कंडारी जब मंच पर अपना वकतव्य देने पहुंचे, तो उन्होंने दोहराया- मेरी तबियत खराब है। उनकी आवाज से ही लग रहा था कि उनकी तबियत खराब है, लेकिन यह वह खालिद की खाला नाटक का वह संवाद था जिसे पूरे नाटक में सबसे अधिक बार दोहराया गया और जितनी बार यह संवाद बोला जा रहा था, दर्शकों की गुदगुदाहट हॅंसी बनकर बाहर फूटती रही।