ऋतुराज है वसंत ऋतु
प्रदीप कुमार
वर्ष भर में छः ऋतुएं आती हैं, लेकिन इन ऋतुओं में से वसंत ऋतु सबसे प्रिय ऋतु मानी जाती है। वसंत के आगमन पर संपूर्ण प्राणी जगत हर्षोल्लास से झूम उठता है, प्रकृति में चारों ओर हरियाली खिल उठती है, ऐसा लगता है मानो कोई नई-नवेली दुल्हन ने हल्के से अपने चेहरे से घूंघट उठा दिया हो। इसीलिए वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा या ऋतुराज भी कहा जाता है।
भारत विश्व में एक ऐसा देश है, जहां हर दिन हर माह कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। इसीलिए भारतवर्ष को त्योहारों का देश भी कहा जाता है। इन्हीं त्योहारों में से फूलदेई (घौग्या) उत्तराखंड राज्य का प्रमुख बालपर्व है। उत्तराखंड में फूलदेई त्योहार को बड़े हर्षोल्लास व धूमधाम से मनाया जाता है। फूलदेई के त्योहार में तरह-तरह के फूलों को बच्चे पहले ही दिन बीनकर लाते हैं और दूसरे दिन अपने गांव-पड़ोस की देहरियों पर डालते हैं। ऐसा ही एक खूबसूरत फूल ऊंचे पहाड़ों पर बच्चों को बरबस आकर्षित करता है। फ्यूंली और वसंत का यह अनन्य प्रेम देखते ही बनता है।
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मान्यता है कि फ्यूँंली एक सुंदर राजकुमारी थी, जो प्रकृति में विचरण करती रहती और प्रकृति से अनंत प्रेम करती। वह सारा दिन जंगलों में ही पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, पहाड़, नदी व झरनों के साथ खेला करती। मानो कि यह जंगल ही उसका घर है और प्रड्डति में चारों ओर खिले फूल और कलियां उसकी सहेलियां हों।
एक दिन की बात है, जब राजकुमारी फ्यूँली हर दिन की तरह जंगलों में फूलों के साथ खेल रही थी। तभी कहीं दूर प्रदेश से घूमते-घूमते एक राजा आ गया। जैसे ही राजा की नजर राजकुमारी पर पड़ी, तो राजा की आंखें खुली की खुली रह गई। राजकुमारी फ्यूँली इतनी सुंदर थी कि उसके चेहरे की शीतल रोशनी से रात के अंधेरे में भी उजाला हो जाए। राजा राजकुमारी फ्यूँली की सुंदरता पर मोहित हो गया। उसने मन ही मन उसे महारानी बनाने का मन बना दिया। अंततः राजा ने राजकुमारी फ्यूँली के सामने विवाह प्रस्ताव रखा। फ्यूँली ने उनके प्रस्ताव को मान लिया और राजा के साथ विवाह कर चली गई।https://regionalreporter.in/satvan-jashne-virasat-ki-pahli-sham/
सब कुछ ठीक चल रहा था, पर महारानी फ्यूँली एक आजाद परिंदा सी थी, उसका मन कहां, यहां राजपाट में लगने वाला था। महल की चार दीवारों में उसे घुटन से महसूस हो रही थी। उसका मन उन ऊंचे-नीचे पहाड़ों की सुंदर वादियों में घूमने के लिए व्याकुल था, जहां वह पहले खेला करती थी।
फ्यूँली के वियोग में वन के वृक्षों के पत्ते सूखकर गिरने लगे, नदी व झरनों का पानी भी सूखने लगा पूरी धरती सूखी पड़ गई। यह दुःखद समाचार सुनते ही फ्यूँली ने महाराज से वन जाने का आग्रह किया, परंतु राजा ने इंकार कर दिया। अपनों के बिछड़ने के वियोग में फ्यूँली की एक दिन मौत हो गई, परंतु अपने प्राण त्यागने से पहले फ्यूँंली ने महाराज से निवेदन किया कि मेरा मृत शरीर उन पहाड़ों में कहीं दफना देना, जहां मैं खेला करती थी। राजा ने ठीक उसी प्रकार से फ्यूँली का मृत शरीर पहाड़ की एक चोटी में दफना दिया। कुछ समय पश्चात् ठीक उसी जगह पर एक पीले रंग का सुंदर सा फूल खिल उठा, जिस जगह पर फ्यूँंली को दफनाया गया था। तब से यह फूल फ्यूँंली नाम से जाना जाता है। इस फ्यूँंली के फूल खिलते ही पेड़-पौधों में फिर से नवजीवन का संचार होने लगा। फूलों की कलियां खिलने लगी। कोयल, घुघुती, हिलांस व म्योली भी अपनी मीठी आवाज में कुहू-कुहू कर वसंत गीत गाने लगी। हरी-भरी फसलें नववर्ष का स्वागत करने लगी और इतने सुंदर वातावरण से मानव शरीर में एक नए रक्त का संचार होने लगा।