प्रकृति को आत्मसात कर कविताएं लिखते थे पंतः प्रो. लोहानी
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
प्रकृति के सुकुमार कवि पद्म भूषण सुमित्रानंदन पंत के जन्मदिवस के अवसर पर हिंदी विभाग, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चन्द्र लोहानी ने बतौर मुख्य अतिथि सुमित्रा नंदन पन्त जी के जीवन और रचनाधर्मिता पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि मेरा सौभाग्य है कि मेरी और पन्त की जन्मभूमि एक ही है, सुमित्रानंदन पंत अलग-अलग भावभूमि में कविता लिखते थे जिसे हर दिन प्रकृति में महसूस किया जा सकता है।
इस अवसर पर कला संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. मंजुला राणा ने कहा कि पंत उतराखंड के गौरव है, कवि पंत समकालीन नहीं समकाल के कवि है जिन्हें हर युग में आत्मसात किया जा सकता है।
वहीं हिंदी एवं भारतीय भाषा विभाग की संयोजक एवं अध्यक्ष प्रो गुड्डी बिष्ट पंवार ने कहा कि सुमित्रा नंदन पंत ने प्रकृति को माँ की तरह माना है और वे अपने प्रेम और ममत्व के समन्वय के कवि है। इस अवसर पर शोधार्थी चैतन्य कुकरेती, राकेश ने भी पंत के जीवन पर अपने विचार रखे। कार्यक्रम का समापन डा. अनूप सेमवाल ने धन्यवाद प्रेषित कर किया।
इस अवसर पर डा. रोहित कुमार, डा. कपिल पंवार, डा. सविता मैठाणी समेत हिंदी विभाग के सभी शोधार्थी आकाशदीप, रेशमा पंवार, नवीन, आनन्द, आशीष आदि छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
सुमित्रानन्दन पन्त का परिचय
सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म बागेश्वर ज़िले के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई 1900 ई. को हुआ। जन्म के छह घंटे बाद ही उनकी माँ का निधन हो गया। उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया। उनका नाम गोंसाई दत्त रखा गया। वह एक प्रकृति प्रेमी थे। वह गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे।
1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। 1918 में मँझले भाई के साथ काशी गये और क्वींस कॉलेज में पढ़ने लगे। वहाँ से हाईस्कूल परीक्षा उत्तीर्ण कर म्योर कालेज में पढ़ने के लिए इलाहाबाद चले गए।
पंत जी की रचनाएं
1926 में उनका प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘पल्लव’ प्रकाशित हुआ। 1938 में उन्होंने ‘रूपाभ’ नामक प्रगतिशील मासिक पत्र निकाला। वे १९५० से १९५७ तक आकाशवाणी से जुडे रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया। जो बाद की उनकी रचनाओं ‘स्वर्णकिरण’ और ‘स्वर्णधूलि’ में देखी जा सकती है।
प्रथम में वे छायावादी हैं, दूसरे में समाजवादी आदर्शों से प्रेरित प्रगतिवादी। सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं – ग्रन्थि, गुंजन, ग्राम्या, युगांत, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, चिदंबरा, सत्यकाम आदि।
पुरस्कार एवं सम्मान
हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण(1961), ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी 1960 तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।