साहित्यकार सुरेंद्र भट्ट रीजनल रिपोर्टर से जुड़े एक लेखक
डा. अंबरीश चमोली
गढ़वाली हिंदी और अंग्रेजी के विद्वान, सेवानिवृत शिक्षक, संवेदनशील साहित्यकार,प्रत्युत्पन्न मति,अपने सेंस ऑफ ह्यूमर से गुदगुदाने वाले, लेखन में निरंतर सक्रियता से संलग्न सुरेंद्र भट्ट ‘एकांत’ का आकस्मिक निधन साहित्यिक जगत की अपूर्णनीय क्षति है।
श्री सुरेंद्र भट्ट का जन्म 2 दिसंबर सन 1954 को स्वर्गीय श्री वाचस्पति भट्ट एवं स्वर्गीय श्रीमती वीरा देवी के घर पर ग्राम सेमा पोस्ट अंजनीसैण,पट्टी खास टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ था ।आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से एम०ए०राजनीति विज्ञान तथा बी०एड०की उपाधियां प्राप्त की। लंबे समय तक इंटरमीडिएट कॉलेज रौड़धार में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत रहे। सेवानिवृत्ति के उपरांत आप देशाटन, अध्ययन एवं स्वतंत्र लेखन से जुड़ गये। आपका हिंदी, अंग्रेजी और गढ़वाली तीनों भाषाओं पर असाधारण अधिकार था।
आपकी रचनाएं समय समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही।आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में भी आप निरंतर सक्रिय रहे। अपने सेवाकाल में सुरेंद्र भट्ट अपने नेतृत्व कौशल तथा लोकप्रियता से माध्यमिक शिक्षक संगठन में विभिन्न पदों पर चुने जाते रहे ।https://regionalreporter.in/sumitranandan-pants-birthday/
आपने “सतमंगल्या” नाम का गढ़वाली उपन्यास लिखा, जो गढ़वाली उपन्यास के इतिहास में एक मील का पत्थर है। आप स्वर्गीय श्री मोहनलाल नेगी जी की परंपरा के साहित्यकार हैं। नेगी जी की “जोनि पर छापु किलै” और “सुनैना” गढ़वाली की अन्यतम कृतियां हैं ।
इसी परंपरा में सुरेंद्र दत्त भट्ट का ‘सतमंगल्या’ गढ़वाली उपन्यास बहुत चर्चित रहा ।
समीक्षा: सतमंगल्या और लुप्त होती सांस्कृतिक विरासत की
उनका भावपूर्ण स्मरण करते हुए मैं उनकी दो प्रतिनिधि रचनाओं की संक्षिप्त समीक्षा आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं। पहली कृति है “सतमंगल्या”और दूसरी है “लुप्त होती हमारी सांस्कृतिक विरासत”।
“सतमंगल्या ” उपन्यास में पहाड़ की संस्कृति प्रतिबिंबित होती है। ज्योतिष शास्त्र के हिसाब से सप्तम मंगल मेलापक में बहुत क्रूर माना जाता है और ऐसे जातक को सतमंगल्या कहा जाता है। इस उपन्यास की नायिका राधा सतमंगल्या है। ज्योतिषी ने उसके संबंध में जो भविष्यवाणी की है वह सही निकलती है। उपन्यास का नायक सुंदरू भी अमावस्या की रात्रि में जन्म लेने के कारण ज्योतिष के हिसाब से “औंस्या”है। अपने ग्रहों की दशा के कारण दोनों को बहुत कष्ट उठानेपड़ते हैं।
उपन्यास का नायक साम्यवादी विचारों का युवक है वह ठाकुर जाति का है। उसकी प्रेमिका कमली एक दलित बालिका है।
सुन्दरू के माता-पिता उसके लिए अपनी ही बिरादरी में राधा नाम की लड़की से रिश्ता तय करते हैं।
सुन्दरू कमली को दिलों जान से चाहता है। वह जातिवाद की रूढ़ियों को तोड़कर घर से भागकर कमली से विवाह कर लेता है। सुन्दरू दिल्ली पुलिस में भर्ती हो जाता है।जीवन आनंद से बीत रहा था।घर में नये मेहमान की उत्सुकता पूर्ण प्रतीक्षा हो रही थी पर भाग्य चक्र बड़ा प्रबल है।कमली की प्रसव के दौरान आकस्मिक मृत्यु हो जाती है।सुन्दरू की आशा कलिकाएं टूट कर बिखर जाती हैं।
गांव में सुंदरू की मंगेतर राधा का विवाह चंदरू से हो जाता है ।ग्रह दशा और दुर्भाग्य राधा का भी पीछा नहीं छोड़ते।चंदरू भी असमय काल कवलित हो जाता है।
भाग्य एक बार पुनः विधुर सुंदरू और वैधव्य झेल रही राधा का मिलन करवाता है।
राधा और सुंदरू के पुनर्विवाह के साथ ही इस उपन्यास का सुखद समापन हो जाता है ।यह उपन्यास केवल एक कहानी मात्र नहीं है जो ज्योतिष की रूढ़ियों को चित्रित करता है बल्कि इस उपन्यास के माध्यम से लेखक विभिन्न सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करता है । समाज के दोहरे आचरण पर तीखा व्यंग्य करता है। जातिगत रूढ़ियों की श्रृंखलाओं को तोड़कर एक नये समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। कभी रुलाता है कभी हंसाना है कभी गुदगुदाता है कभी सोचने पर विवश करता है।
आपकी दूसरी प्रकाशित पुस्तक “लुप्त होती हमारी सांस्कृतिक विरासत” है ।जिसमें भट्ट जी ने विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक शैक्षिक और राजनीतिक क्षेत्र में अपने अनुभवों पर आधारित आलेखों का संग्रह किया है । बहुत से लेख ऐतिहासिक और शोधपरक हैं आपकी भाषा शैली आकर्षक और मंझी हुई है।
जब तक कोई विशिष्ट व्यक्ति हमारे मध्य रहते हैं तब तक हम सोचते हैं कि आज मिलेंगे,कल मिलेंगे एक विश्वास रहता है लेकिन अचानक किसी विभूति के चले जाने के बाद उनका अभाव और कमी बहुत अधिक महसूस होने लगती है। पिछले जून में भट्ट जी से मुलाकात हुई थी। साहित्य और संस्कृति पर गंभीर चर्चा हुई थी। उनके घर पर उनके बागीचे की रसभरी लीचियों का रसास्वादन किया था।
आज श्री सुरेंद्र भट्ट जी हमारे बीच में नहीं है लेकिन अपने साहित्यिक अवदान के रूप में वह हमेशा हमारे बीच रहेंगे ।एक संवेदनशील कथाकार, समाज के प्रति हमेशा सकारात्मक सोच रखने वाले और अपनी संस्कृति से अनन्य अनुराग रखने वाले दिवंगत भट्ट जी को रीजनल रिपोर्टर परिवार विनम्र श्रद्धांजलि देता है।