मनीष सिसोदिया को हर सोमवार थाने में देनी होगी हाजरी
सिसोदिया को अपना पासपोर्ट करना होगा जमा
स्टेट ब्यूरो
आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को जमानत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिली है। कथित शराब घोटाले में 16 महीने से ज्यादा समय तक बंद मनीष सिसोदिया को आज बड़ी राहत मिली है। उन्हें 10 लाख के निजी मुचलके पर जमानत मिल गई है।
आज शाम ही सिसोदिया को जेल से रिहा भी कर दिए जाएंगे। इससे पहले मनीष सिसोदिया ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उनकी जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया था। सिसोदिया पर आबकारी नीति में गड़बड़ी के आरोप हैं। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच यह आदेश सुनाएगी। कोर्ट ने मंगलवार को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
शर्तों के तहत मिली जमानत
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, सिसोदिया को अपना पासपोर्ट जमा करना होगा, इसका मतलब सिसोदिया देश छोड़कर बाहर नहीं जा सकते। मनीष सिसोदिया को हर सोमवार को थाने में हाजिरी देनी होगी। बता दें कि सिसोदिया को करीब 17 महीने जेल के अंदर रहना पड़ा। हालांकि बीच-बीच में उन्हें अपनी पत्नी के खराब स्वास्थ्य के चलते पेरोल दी गई थी।
कोर्ट ने फैसले के दौरान क्या कहा?
- जमानत को सजा के तौर पर नहीं रोका जा सकता।
- मुकदमे के समय पर पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।
- निचली अदालतों को यह समझने का समय आ गया है कि ‘जेल नहीं, जमानत’ ही नियम है।
- सिसोदिया को लंबे दस्तावेजों की जांच करने का अधिकार है।
आर्टिकल 21 के तहत तुरंत सुनवाई का अधिकार
अदालत ने यह देखने के बाद याचिका मंजूर की कि मुकदमे में लंबी देरी ने सिसोदिया के शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने कहा कि शीघ्र सुनवाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता का एक पहलू है। बेंच ने कहा कि सिसोदिया को शीघ्र सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है। हाल ही में जावेद गुलाम नबी शेख मामले में भी हम ऐसे ही निपटे थे। हमने देखा कि जब अदालत, राज्य या एजेंसी शीघ्र सुनवाई के अधिकार की रक्षा नहीं कर सकती है, तो अपराध गंभीर होने का हवाला देकर जमानत का विरोध नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 21 अपराध की प्रकृति के बावजूद लागू होता है।