गोधरा ट्रेन अग्निकांड दोषियों की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार, 06 मई को गोधरा ट्रेन अग्निकांड से जुड़े दोषियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें यह मांग की गई थी कि उनकी अपील पर केवल तीन जजों की पीठ ही सुनवाई कर सकती है क्योंकि मामला मौत की सजा से जुड़ा है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक हाईकोर्ट द्वारा मौत की सजा की पुष्टि नहीं की जाती, तब तक दो जजों की पीठ भी सुनवाई कर सकती है।

गोधरा कांड और कानूनी प्रक्रिया

गोधरा कांड 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन पर घटित हुआ था, जब साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई थी, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी।

मरने वालों में ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। इस घटना के बाद गुजरात में व्यापक दंगे हुए, जिनमें सैकड़ों लोगों की जान गई।

इस कांड की जांच और सुनवाई वर्षों तक चली। ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में 11 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी, जबकि गुजरात हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए उनकी सजा को उम्रकैद में बदल दिया। अब दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील दायर की है।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

दोषियों के वकील संजय हेगड़े ने सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ—जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस अरविंद कुमार—के समक्ष दलील दी कि मौत की सजा से जुड़े मामलों में केवल तीन जजों की पीठ ही सुनवाई कर सकती है।

उन्होंने दिल्ली के लाल किला आतंकी हमले में दोषी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशरफ के मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसी गंभीर सजा के मामलों में एक विस्तृत पीठ आवश्यक है।

हेगड़े ने यह भी तर्क दिया कि यदि दो जजों की पीठ किसी दोषी को पुनः मौत की सजा सुनाती है, तो वह निर्णय फिर से तीन जजों की पीठ के पास जाएगा, जिससे न्यायिक संसाधनों की दोहराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को अस्वीकार करते हुए कहा कि केवल वही मामले तीन जजों की पीठ को भेजे जाते हैं, जिनमें हाईकोर्ट ने मौत की सजा को बरकरार रखा हो।

जस्टिस माहेश्वरी ने स्पष्ट किया कि इस मामले में केवल ट्रायल कोर्ट ने दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि हाईकोर्ट ने उसे उम्रकैद में बदल दिया था। इसलिए, दो जजों की पीठ इस अपील की सुनवाई करने के लिए पूरी तरह सक्षम है।

अदालत ने यह भी कहा कि 2014 में दिए गए संविधान पीठ के फैसले के अनुसार, केवल उन मामलों में तीन जजों की पीठ अनिवार्य है जहाँ हाईकोर्ट ने मौत की सजा की पुष्टि की हो। गोधरा कांड का वर्तमान मामला उस श्रेणी में नहीं आता।

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