रीजनल रिपोर्टर

सरोकारों से साक्षात्कार

विकास की असल तस्वीर

गंगा असनोड़ा

उत्तराखंड विकास के ढाई दशक के पायदान पर है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी एक ही दिन में हवाई यात्रा कर तीन-तीन मेलों के उद्घाटन कर रहे हैं और बता रहे हैं उत्तराखंड के विकास की बानगी। क्या वाकई इस प्रदेश के मुखिया सजे-धजे मंचों से जो कह रहे हैं, वह इस प्रदेश में हो रहा है ?

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24 वर्ष के युवा उत्तराखंड के हालात उतने ही बदहाल हैं, जितने इस राज्य में युवा बेरोजगारों के हैं। युवाओं के लिए विभिन्न विभागों में भर्ती परीक्षाओं के लिए तिथियां घोषित होती हैं और फिर ये परीक्षाएं स्थगित हो जाती हैं। युवा बेरोजगार मुंह ताकता ही रह जाता है।

ऐसा ही विकास 80 के दशक में श्रीकोट में स्थापित बेस चिकित्सालय में भी दिखाई देता है। वर्तमान में यह अस्पताल उत्तराखंड के पहले राजकीय मेडिकल काॅलेज वीर चंद्र सिंह आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान का टीचिंग अस्पताल है।

कैबिनेट मंत्री से लेकर मेडिकल काॅलेज प्रशासन और बेस अस्पताल प्रशासन इस अस्पताल और मेडिकल काॅलेज के कायाकल्प में जुटा हुआ है। आए दिन अखबारों की छपी सुर्खियां बताती हैं कि इस मेडिकल काॅलेज में जितना विकास बीते दो-तीन वर्षों में हुआ है, उतना पूरे राज्य में 24 सालों में भी नहीं हुआ होगा।

विकास की बयार में डूबा श्रीनगर (गढ़वाल) भी कुछ ऐसी ही हालत में दिखाई देता है। यहां करीब पांच करोड़ की लागत से रोडवेज डिपो का निर्माण होता है, लेकिन पहली बरसात में ही वह पानी से लबालब हो जाता है। तीसरी बरसात तक तो वह टपकने भी लगता है। विकास की इस धुंआधार पारी का बखान स्वयं मुख्यमंत्री जी श्रीनगर के ऐतिहासिक बैकुंठ चतुर्दशी मेले में तक कर डालते हैं।

एक बानगी बताते चलूं, यहां बीते तीन माह से डायलिसिस यूनिट बंद चल रहा है। यहां डायलिसिस लेने वाले करीब 80 रोगी अस्पताल प्रशासन का मुंह ताक रहे हैं। यहां से वहां भटक रहे हैं, लेकिन कोई उनकी दुखती रग पर हाथ रखने वाला नहीं है।

दो माह पूर्व उत्तराखंड के राज्यपाल ले.जनरल गुरमीत सिंह की अगुवाई में शानदार कार्यक्रम कर कार्डियक कैथ लैब का उद्घाटन किया गया। तब राज्यपाल महोदय ने मंत्री जी की शान में जो कसीदे पढ़े, वो मन को तरंगित करने वाले तो थे, लेकिन इस कैथ लैब की वास्तविक तस्वीर आज भी सिर धुनने को मजबूर करती है। कार्डियोलाॅजिस्ट की अनुपस्थिति में यहां सजी मशीनें भी रोगियों का तथा रोगी इन मशीनों का मुंह ताकने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते।

विकास की बानगी समझाने वाले जन प्रतिनिधियों को जब जरूरत पड़ती है, तो वे अच्छे से अच्छे अस्पताल में इलाज ले सकते हैं और लेते हैं। काश! उनका भी इन अस्पतालों से साबका पड़ता, तो तस्वीर शायद कुछ और होती!

https://regionalreporter.in/the-program-was-organized-at-avn-public-school-kotdwar/
https://youtu.be/9QW0uH_UIwI?si=z9tCo0ORvN6rOLcw
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