ऊखीमठ: केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में निरन्तर हो रही बारिश से हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्याल हरियाली से आच्छादित होने लगे है।
सुरम्य मखमली बुग्यालों के हरियाली से आच्छादित होने से बुग्यालों की सुन्दरता पर चार चांद लगने शुरू हो गयें है तथा जंगलों में विचरण करने वाले अनेक प्रजाति के जंगली जानवर बुग्यालों में निर्भीक उछल – कूद करने लगे है।
औषधीय जड़ी-बूटियों का अंकुरण और विविधता
बुग्यालों में हरियाली उगने से इन दिनों बुग्यालों में उगने वाली अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियां भी अंकुरित होने लगी है ।
केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों के भूभाग में बसे बुग्याल हरियाली से आच्छादित होने से भेड़ पालकों ने धीरे – धीरे ऊंचाई वाले इलाकों की ओर रूख दिया है तथा जुलाई माह के अन्तिम सप्ताह तक भेड़ पालक अपनी तक पहुंच जायेगें।
केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में सुरम्य मखमली बुग्यालों की भरमार है जिनमें- टिंगरी- विसुणी ताल, गडगू – ताली, पटूणी – मनणामाई तीर्थ, मदमहेश्वर – पाण्डव सेरा – नदी कुण्ड, मदमहेश्वर – बूढ़ा मदमहेश्वर , भुजगली – तुंगनाथ- चन्द्रशिला के आंचल में दूर – दूर फैले असंख्य मखमली बुग्याल है।
हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्यालों को प्रकृति ने अपने वैभवो का भरपूर दुलार दिया है। इन बुग्यालों में घड़ी भर बैठने से भटके मन को अपार शान्ति मिलती है।

प्राकृतिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव का स्रोत
केदार घाटी में यदि आप किसी घाटी से चोटी की ओर अग्रसर होगें तो पहले सीढ़ीनुमा खेल – खलिहान, गांव – कस्बे, नदी – नाले आपको आनन्दित करेंगे फिर सघन वन सम्मोहित करेगें।
करीब आठ हजार फीट के ऊपर सारा परिदृश्य बदला हुआ नजर आयेगा। पेड़ – पौधे गुम हो जायेगें और नर्म – नाजुक मखमली घास का रुपहला विस्तार नजर आयेगा जिन्हें बुग्याल कहा जाता है।
इन बुग्यालों के पावन वातावरण में पल भर बैठने से मानव का अन्त:करण शुद्ध हो जाता है और उसे सांसारिक राग, द्वेष, घृणा, लोभ, क्रोध, अहंकार जैसे भावों पर विजय पाने की शक्ति मिलती है तथा मानव में सत्य, स्नेह, संयम, पवित्रता, दान, दया जैसे भावों का उदय होता है।
बरसात व शरत ऋतु में इन बुग्यालों में अनेक प्रजाति के पुष्प व जड़ी बूटियां अपने यौवन पर रहती है इसलिए बरसात के समय बुग्यालों की सुन्दरता और अधिक बढ़ जाती है।

हिमालय के आंचल में फैले मखमली बुग्यालों में कुखणी, माखुणी, जया – विजया, रातों की रानी सहित अनेक प्रजाति के पुष्प व जड़ी=बूटियां प्रति वर्ष उगती है।
सिद्ववा – विद्धवा व एडी – आछरी नृत्य में कुखणी – माखुणी पुष्पों की महिमा का गुणगान बडे़ मार्मिकता के साथ किया जाता है तथा सिद्धवा – विद्धवा नृत्य में बुग्यालों की महिमा का वर्णन शैला सागरों ( शान्त वातावरण ) से किया गया है।

बुग्यालों की अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक महत्ता
प्रकृति प्रेमी शंकर पंवार ने बताया कि केदार घाटी के ऊंचाई वाले इलाकों में लगातार हो रही बारिश के कारण सभी मखमली बुग्याल हरियाली से आच्छादित है तथा मखमली बुग्यालों के हरियाली से आच्छादित होने के कारण बुग्यालों की सुन्दरता और अधिक बढ़ने लगी है।
जागर गायिका रामेश्वरी भट्ट ने बताया कि पौराणिक जागरों में मखमली बुग्यालों का वर्णन बडे ही मार्मिक तरीके से किया जाता है तथा हिमालय के आंचल में फैले असंख्य बुग्याल देवभूमि की धरोहर है।
प्रकृति प्रेमी विनीता राणा ने बताया कि हिमालय के आंचल में फैले बुग्यालों में ऐडी – आछरियों व इन्द्र की परियों का वास माना जाता है तथा वे आज भी इन बुग्यालों में अदृश्य रुप से नृत्य करते हैं।
भेड़ पालक प्रेम भटट् ने बताया कि बुग्यालों में हरियाली लौटने से सभी भेड़ पालक ऊंचाई वाले इलाकों के लिए अग्रसर होने लगे हैं।

जड़ी-बूटियों का अतुल भण्डार हैं बुग्याल: कुब्जा धर्म्वाण
नगर पंचायत अध्यक्ष कुब्जा धर्म्वाण ने बताया कि हिमालय के आंचल में बसे सुरम्य मखमली बुग्याल विभिन्न प्रजाति के बेशकीमती जड़ी – बूटियों के अतुल भण्डार है तथा गढ़ गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी सहित साहित्यकारों, संगीतकारों व गीतकारों ने बुग्याल की सुन्दरता की महिमा का वर्णन विस्तृत तरीके से किया है।
उन्होंने बताया कि हिमालय के आंचल में बसे बुग्यालों में बरसात के समय विभिन्न प्रकार की जड़ी – बूटियां अपने यौवन पर रहती है तथा आमावस्या की रात्रि को इनका विशेष महत्व माना जाता है।
उन्होंने बताया कि टिगरी से वासुकीताल के आचल में दूर – दूर तक फैले सुरम्य मखमली बुग्याल का स्पर्श प्रकृति की तरफ आकर्षित करता है।

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