विलियम सेक्स उर्फ़ बदरी प्रसाद नौटियाल पत्नी प्रो अनेट संग पहुंचे देवप्रयाग वेधशाला

Badri Prasaad Nautiyal

अब प्रो. अनेट करेंगी बाली और उत्तराखण्ड की तंत्र विद्याओं पर तुलनात्मक अध्ययन

राजेश भट्ट /देवप्रयाग
हिमालय की देव संस्कृति व परम्पराओं पर पिछले 47 बर्षो से शोध कर रहे चर्चित मानव विज्ञानी प्रो.विलियम एस सैक्स देवप्रयाग पहुँचे। उनके द्वारा यहाँ 1946 में स्थापित नक्षत्र वेधशाला में संकलित गढ़वाली व संस्कृत की प्राचीन पांडुलिपियों का शोधपरक अध्ययन किया गया। साथ ही गढ़वाली में बातचीत कर अपनी बोली भाषा को बचाये जाने का भी संदेश दिया।
उत्तराखण्ड में बद्रीप्रसाद नौटियाल के नाम से प्रसिद्ध अमेरिका निवासी व वर्तमान में सोओलि एशिया इंस्टिट्यूट हिडन बर्ग , जर्मनी में प्राध्यापक प्रो विलियम अपनी पत्नी प्रो अनेट के साथ यहाँ पहुँचे ।

उनके द्वारा 1946 में स्व आचार्य चक्रधर जोशी द्वारा स्थापित नक्षत्र वेधशाला का भ्रमण किया गया। उन्होंने बताया कि 1977 में बतौर एक विद्यार्थी वह भारत आये । हिमालय उनका विषय होने पर वह बदरीनाथ पहुँचे थे। तब से आज तक वह यहाँ के देवी- देवताओ की परम्पराओ, लोक संस्कृति व कला पर उनके प्रभाव पर लगातार काम कर रहे हैं। उनके अभी तक तीन शोध ग्रंथ नंदा देवी राजजात, पांडव लीला नृत्य, न्याय देवता भैरव पर प्रकाशित हो चुके हैं व जल्दी ही दानी करण देवता पर उनका शोध ग्रंथ प्रकाशित होगा।

वेधशाला में उनके द्वारा गढ़वाल के प्रसिद्ध तांत्रिकों के तंत्र ,मंत्र,यंत्र के प्राचीन दुर्लभ हस्त लिखित ग्रंथों को देखा गया। साथ ही गढ़वाली व संस्कृत में रचित इन ग्रंथों के कुछेक हिस्सों को पढ़ा भी गया। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी प्रो.अनेट कम्बोडिया के बाली द्वीप व उत्तराखण्ड की तन्त्र परम्पराओं में समानता पर तुलनात्मक अध्ययन कर रही हैं।

वेधशाला में इस विषय की पांडुलिपियों को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा कि इससे उन्हें अपने शोध कार्य में काफी सहायता मिली है। उन्होंने वेधशाला संरक्षित दुर्लभ धरोहरों को बचाए जाने की जरूरत बताई।

प्रो. विलियम ने कहा कि देवभूमि में देवी-देवता आज भी जाग्रत हैं। उनसे जुड़े साहित्य व धरोहरों का संरक्षण होना चाहिए।

वेधशाला संचालक आचार्य भास्कर जोशी ने उत्तराखण्ड की समृद्ध तंत्र परम्परा व विशेषताओं की विस्तार से उनको जानकारी दी। यहाँ शोधार्थियो से प्रो.विलियम ने गढ़वाली में बातचीत करते कहा कि युवा पीढ़ी अपनी बोली-भाषा को व्यवहार में लाकर उसको जीवित रखे। प्रो विलियम के शोध कार्य में लगातार सहयोगी रहे प्रो.डी.आर पुरोहित व रंगकर्मी मदन लाल डंगवाल भी उनके साथ यहाँ पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि प्रो विलियम की उत्तराखण्ड की देव संस्कृति को विश्व पटल पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

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