डा अतुल शर्मा
सन् साठ का दशक होगा। विकास नगर ( जो तब चोहड़पुर कहलाता था) में एक जनजाति सम्मेलन में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री व स्वतंत्रता सेनानी पं. जवाहरलाल नेहरू आये थे। तब बहुत सादगी का समय था।
मैं ताई जी ( लज्जा रानी चौधरी जी, बद्री पुर निवासी) का हाथ पकड़ कर चाचा नेहरू की प्रतीक्षा में खड़े जनसमुदाय की सबसे आगे की पंक्ति में खड़ा था।
बहुत लोकप्रिय थे पंडित नेहरू। बच्चों से बहुत लगाव था। एकाएक एक गाड़ी रुकी। दरवाजा खुला तो एक बहुत आकर्षक व्यक्तित्व उसमें से बाहर आये। लोग नारे लगाने लगे। हल्की-फुल्की धक्का मुक्की भी हुई। पर ताई जी मेरा हाथ मज़बूती से पकड़े रही।
सबका अभिवादन स्वीकार करते हुए जब वो मेरे सामने आये तो मैने बाल सुलभ आवाज में ज़ोर से कहा… चाचा नेहरू… उनकी नज़र मुझ पर पड़ी…कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ज़िन्दाबाद के नारों के बीच ये कौन है जो चाचा नेहरू को बुला रहा है।
वे मेरे सामने थे खादी की अचकन, चूड़ीदार पाजामा, गांधी टोपी पहने। लोगों ने उन्हें सूत की माला पहनाई। मैंने एक गुलाब का फूल उनकी तरफ बढ़ा दिया।
ठीक वैसा ही जैसा उनके बटन होल में लगा था। उन्होंने वह फूल लिया और उनके हाथ में जो छड़ी थी, छोटी सी वह मेरी तरफ बढ़ा दी। वे मुस्कुरा दिये और मुझे गोदी में उठा लाया।
वह पल मैं कभी नहीं भूलता। समय के धुधलाते दृष्यों के बीच मेरे मन में वह अमिट याद बसी हुई है।
इस सब के बीच ताई जी का हाथ मुझसे छूट गया। भीड़ में मैं अकेला पड़ गया और मेरी आंखे भर आयीं तभी किसी की नज़र मुझ पर पड़ी उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा ही था कि ताई जी दिख गयीं और मैं उनसे लिपट गया।
इस सब के बावजूद मैने पं. नेहरू की दी हुई छड़ी नहीं छोड़ी। जो मेरे पास बहुत समय तक रही। वह किराये का मकान बदलने में कहीं खो गयी।
जब मैं नेहरू जी के ठीक सामने था तब मुझे नहीं पता था कि मैं एक जीवित इतिहास के सामने खड़ा हूँ, मेरे लिए तो वे मात्र चाचा नेहरू ही थे और आज भी हैं।
मेरे पूज्य पिताजी महान स्वतंत्रता सेनानी व राष्ट्रीय धारा के प्रमुख कवि श्रीराम शर्मा प्रेम के आत्मिय संबंध महान व्यक्तित्वों से थे। वे उस प्रदर्शनी में व्यवस्था देख रहे थे।
एक विशाल जन सभा में सबसे छोटे बच्चे ने एक कविता भी पढ़ी थी तुतलाते हुए जबकि पहले इतनी भीड़ को देख कर घबरा भी गया था। फिर मैंने कविता सुनाई…
“बोलते हुई वो जैकेट के बटन टटोलते
भैया के कालेज के लड़के इनकी जय क्यों बोलते”!
बाकी याद नहीं है , यह संस्मरण आज याद आता है तो यह भी याद आता है कि उसके कई वर्ष बाद अम्मा जी व दीदी रेखा, रंजना, रीता के साथ कई बार देहरादून में उस जेल को देखने भी गया जहाँ पं नेहरू ने स्वाधीनता संग्राम में सज़ा काटी थी।
बहुत समय बाद यह भी जाना कि उन्होंने इसी जेल में ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ के अंश व पिता के पत्र-पुत्री के नाम के कुछ हिस्से भी लिखे थे।
स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को पिताजी से सुनता रहा।
जब मैं विकास नगर (चोहड़पुर) में था तब मुझे पता नहीं था कि नेहरू जी के साथ और कौन-कौन आये हैं।
ये तो तब पता चला जब वह फोटो देखी जो फोटो ग्राफर जितेंद्र गोयल जी ने खींची थी। ऐतिहासिक फोटो। मैंने बहुत बाद में जाना कि इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश चन्द्र भानु गुप्त, जवाहर लाल कौल व अयोध्या प्रसाद दीक्षित जी भी थे। दीक्षित जी हमारे बहुत पारिवारिक रहे।
मुझे जब एम.ए. हिंदी में स्वर्णपदक मिला तो रीता रंजना मेरी फोटो के प्रिंट लेने अजंता स्टूडियो गयीं, वही उन्होंने नेहरू जी के साथ मेरी फोटो को भी इंचार्ज करा कर लैमिनेट करा दिया।
देहरादून से पंडित नेहरू का बहुत लगाव रहा है। हमने उन्हें लिटन रोड से खुली गाड़ी में जाते देखा है। जीवन के अंतिम पड़ाव पर वे आखिरी बार सहस्त्र धारा गैस्ट हाउस में गये थे। वहाँ से लौटने पर उनका निधन हो गया था।
वे कहते थे “कि आज का बच्चा कल का नागरिक है…”












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