उत्तराखण्ड में 13 हिमनद झीलें बन सकती है बाढ़ का कारण

उत्तराखण्ड की 13 हिमनद झीलों समेत विभिन्न आपदाओं व दुर्घटनाओं पर उदय की 18वीं रिपोर्ट जारी
गंगा असनोड़ा

27 मार्च गृह मंत्रालय (आपदा प्रबन्धन डिविजन), भारत सरकार ने द्वारा 26 मार्च 2024 को सभी हिमालयन राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ हिमनद झीलों के विस्फोट से आने वाली बाढ़ के नियंत्रण विषय पर एक अति महत्वपूर्ण बैठक ऑन लाईन माध्यम से आहूत की गयी।

जिसमें विभिन्न हिमालयी राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ ही उत्तराखण्ड राज्य की तरफ से मुख्य सचिव, श्रीमती राधा रतूडी एवं सचिव आपदा प्रबन्धन एवं पुनवार्स विभाग, उत्तराखण्ड शासन, डा० रंजीत कुमार सिन्हा द्वारा प्रतिभाग किया गया।

बैठक के दौरान भारत सरकार द्वारा यह अवगत कराया गया कि विभिन्न तकनीकी संस्थाओं द्वारा किए गए शोध के आधार पर उपलब्ध आंकड़ो का विश्लेषण करते हुए बताया गया कि हिमालयन राज्यों में ऐसे 188 हिमनद झीलें हैं, जिनमें से 13 हिमनद झीलें उत्तराखण्ड राज्य अन्तर्गत हैं।

इन 13 झीलों को रिस्क फैक्टर के आधार पर ए ‘बी’ और ‘सी तीन विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया गया है। जिसमें से अतिसंवेदनशील 05 हिमनद झीलों को ए श्रेणी में तथा संवेदनशील 04 हिमनद झीलों को बी श्रेणी में तथा शेष 04 हिमनद झीलें जो अपेक्षाकृत कम संवेदनशील हैं को श्रेणी सी में रखा गया है।

बैठक में बताया गया कि ए श्रेणी में वर्गीकृत हिमनद झीलों में से एक जनपद चमोली तथा चार जनपद पिथौरागढ़ में अवस्थित हैं। इसी प्रकार ‘बी’ श्रेणी वर्गीकृत हिमनद झीलों में से एक जनपद चमोली, एक जनपद टिहरी तथा दो पिथौरागढ़ में अवस्थित हैं।

प्रथम चरण में ए श्रेणी में वर्गीकृत 05 हिमनद झीलों के जोखिम आंकलन / सर्वेक्षण का कार्य माह मई, जून 2024 में किया जाना प्रस्तावित है। इस कार्य के अन्तर्गत प्रथम फेज में सेटेलाईट डाटा अध्ययन / एकत्रित किया जाना, वैथेमेट्री सर्वे तथा क्षेत्र सर्वेक्षण के आधार पर संवेदनशीलता का आंकलन किये जाने सम्बन्धी कार्य किया जाएगा।

देहरादून स्थित एनवायरनमेंटल एक्शन एंड एडवोकेसी समूह, SDC फाउंडेशन ने अपनी मार्च 2024 की अपनी आपदा एवं दुर्घटना रिपोर्ट जारी कर दी है।

उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) जारी की। एसडीसी फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल ने इस रिपोर्ट में जंगलों में आग, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन में आ रही रुकावटों, जागेश्वर में सड़क चौड़ी करने के लिए एक हजार पेड़ काटे जाने, सिल्याण में भूस्खलन और ग्लेशियल झीलों के खतरे को प्रमुखता से जगह दी गई है।

खतरे की झीलें
हिमालयी क्षेत्र की पांच खतरनाक ग्लेशियर झीलों की जांच के लिए दो विशेषज्ञ समितियों का गठन किये जाने का उदय रिपोर्ट में जिक्र किया गया है। ये झीलें भविष्य में विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकती हैं।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय के तहत कार्य करने वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने उत्तराखंड में 13 ऐसी हिमनद झीलों की पहचान की है, जो बाढ़ का कारण बन सकती है।

खतरे के लिहाज से इन झीलों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। प्राधिकरण उच्च जोखिम वाली ए श्रेणी की पांच झीलों की जांच करवा रहा है।

जंगलों में आग
उदय की रिपोर्ट में मार्च के महीने में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ने की बात कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि गोपेश्वर, उत्तरकाशी, केदारनाथ सहित उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में जंगल आग के चपेट में आये हैं।

गर्मी के सीजन में यह आग बड़ा नुकसान कर सकती है। शुष्क मौसम पराली जलाने के कारण इस तरह की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है।

रिपोर्ट यह भी कहती है कि ज्यादातर अधिकारी और कर्मचारी चुनाव ड्यूटी पर हैं, ऐसे में जंगलों की आग बुझाने में समस्या आ सकती है।

रिपोर्ट में जंगलों को आग से बचाने के लिए स्टाफ बढ़ाने और संसाधनों की कमी दूर करने जैसे काम तत्काल करने की जरूरत है।

रेल लाइन में देरी
रिपोर्ट कहती है कि अप्रत्याशित भूसंरचना के कारण ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन के निर्माण में दो साल और लग सकते हैं। रेल विकास निगम के अधिकारी इसकी वजह हिमालयी क्षेत्र की अप्रत्याशित भूसंरचना को बता रहे हैं।

125 किमी लंबी इस सड़क की सुरंगें दिसंबर 2025 तक पूरी होने की उम्मीद जताई जा रही है। इस रेल लाइन को उत्तराखंड के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

देवदार बचाओ आंदोलन
मार्च के महीने में जागेश्वर में देवदार के पेड़ काटे जाने का मामला काफी गर्म रहा। यहां सड़क चैड़ी करने के लिए देवदार के 1000 पेड़ काटे जाने जाने का फैसला किया गया है। इस फैसले के खिलाफ स्थानीय नागरिकों द्वारा किये गये आंदोलन को उदय की रिपोर्ट में जगह दी गई है।

इन पेड़ों को काटे जाने को लेकर देशभर में चर्चा हुई थी। स्थानीय लोगों ने पेड़ काटे जाने के खिलाफ आंदोलन भी किया था।

रिपोर्ट में कहा गया कि एक हजार देवदार के पेड़ काटे जाने से न सिर्फ पारिस्थितिकी को नुकसान होगा, बल्कि ये पेड़ लोगों की धार्मिक भावना से भी जुड़े हुए हैं, इस वन को दारुक वन कहा जाता है और लोगों की आस्था इस जंगल से जुड़ी हुई है।

सिल्याण में भूस्खलन
उत्तरकाशी जिले के सिल्याण गांव में जसपुर-निराकोट सड़क के लिए निर्माण के दौरान हुए भूस्खलन को उदय की रिपोर्ट में शामिल किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार इस सड़क की कटिंग के कारण सिल्याण गांव में भूस्खलन हो रहा है और पांच घर खतरे की जद में आ गये हैं।

भारी बारिश के कारण एक गौशाला की छत नीचे लटक गई है। गांव के जितेंद्र गुसाईं ने के अनुसार पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को शिकायत भेजी जा चुकी है। विभाग ने गांव का दौरा करके जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया है।

उदय रिपोर्ट, उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन
अनूप नौटियाल ने कहा की उत्तराखंड को अपने आपदा प्रबंधन तंत्र और क्लाइमेट एक्शन की कमजोर कड़ियों को मजबूत करने की सख्त जरूरत है।

उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड उदय मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए सहायक होगी।साथ ही आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी संभवत इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।

क्या है SDC फाउंडेशन
एक वकालत और कार्रवाई समूह, जो हिमालय के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा, वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की भलाई के लिए स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए समर्पित हैं।

पर्यावरण संरक्षण पर लगातार ध्यान देने के साथ, सकारात्मक प्रभाव डालना और अपने गृह राज्य उत्तराखंड और उसे आगे के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुरक्षित करना है।

SDC फाउंडेशन हिमालयी राज्य उत्तराखंड के लिए एक लचीला भविष्य बनाने का प्रयास करते हैं। जलवायु लचीलेपन, अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से चक्रीय अर्थव्यवस्था और टिकाऊ शहरीकरण पर रणनीतिक फोकस के साथ, जीवंत और आत्मनिर्भर समुदायों को बढ़ावा देते हुए क्षेत्र के प्राकृतिक वैभव को संरक्षित करने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं।

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