हाईकोर्ट ने लगाया लाखों का जुर्माना
चेन्नामनेनी ने पहले तीन चुनाव टीडीपी के टिकट पर जीते थे
तेलंगाना में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। तेलंगाना हाईकोर्ट ने कांग्रेस नेता आदि श्रीनिवास की याचिका पर फैसला सुनाते हुए बीआरएस के पूर्व विधायक डॉ. रमेश चेन्नामनेनी को जर्मन नागरिक माना। साथ ही कोर्ट ने उनके खिलाफ 30 लाख रुपये का जुर्माना ठोका है।
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आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस बी. विजयसेन रेड्डी ने रमेश चेन्नामनेनी की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पूर्व बीआरएस नेता चेन्नामनेनी रमेश एक जर्मन नागरिक हैं और उन्होंने वेमुलावाड़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया। उन्होंने खुद को भारतीय नागरिक के रूप में पेश किया।
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने रमेश चेन्नामनेनी के खिलाफ 30 लाख रुपये का जुर्माना ठोका। कोर्ट ने कहा कि 25 लाख रुपये वेमुलावाड़ा के मौजूदा कांग्रेस विधायक आदि श्रीनिवास को भुगतान किया जाना चाहिए। बाकी 5 लाख रुपये तेलंगाना राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को दिया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना कांग्रेस सरकार के सचेतक आदि श्रीनिवास साल 2009 से रमेश की भारतीय नागरिकता के दावों पर सवाल उठा रहे थे। उन्होंने सबसे पहले रमेश चेन्नामनेनी की दलीलों को चुनौती देते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के समक्ष एक रिव्यू पिटीशन दायर की थी। रमेश चेन्नामनेनी के पास जर्मन नागरिकता थी और उन्होंने 31 मार्च 2008 को भारतीय नागरिकता के लिए अप्लाई किया था।
कोर्ट ने कहा कि रमेश चेन्नामनेनी जर्मनी से ऐसा कोई भी डॉक्यूमेंट नहीं पेश कर सके, जिससे यह पुष्टि हो कि वह वहां के नागरिक नहीं रहे। जज ने कहा कि पूर्व विधायक ने कई बार जर्मनी की यात्रा की थी और जर्मन नागरिकता रखने के बावजूद वे वेमुलावाड़ा के विधायक थे।
एक ही सीट से चार बार जीते
रमेश चेन्नामनेनी राजेश्वर राव के बेटे हैं। राजेश्वर राव तेलुगु देशम पार्टी में शामिल होने से पहले अविभाजित आंध्र प्रदेश राज्य में सीपीआई के फ्लोर लीडर थे।
रमेश चेन्नामनेनी ने इससे पहले वेमुलावाड़ा सीट पर चार बार जीत हासिल की थी। 2009 में तेलुगु देशम पार्टी के हिस्से के रूप में और फिर 2010 से 2018 तक तीन बार चुनाव जीता। जिसमें पार्टी बदलने के बाद उपचुनाव भी शामिल है।
भारतीय कानून के अनुसार गैर-भारतीय नागरिक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं या मतदान नहीं कर सकते हैं। इससे पहले 2013 में तत्कालीन अविभाजित आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इसी कारण से उपचुनाव में उनकी जीत को रद्द कर दिया था।
इसके बाद रमेश ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और रोक लगाने का प्रयास किया। लेकिन रोक प्रभावी रहने के दौरान उन्होंने 2014 और 2018 के चुनाव लड़े और जीते।