1 मई को पूरी दुनिया में “अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस” के रूप में मनाया जाता है। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि श्रमिकों की दशकों पुरानी उस लड़ाई का प्रतीक है जिसने कार्यस्थलों में न्याय, समानता और सम्मान की नींव रखी।
इस दिन की जड़ें 19वीं सदी के अमेरिका में हुए श्रमिक आंदोलनों में पाई जाती हैं, जब श्रमिकों ने 8 घंटे की कार्य अवधि के लिए संघर्ष छेड़ा था।
शिकागो का हेयमार्केट आंदोलन: क्रांति की चिंगारी
1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में एक बड़ा औद्योगिक आंदोलन हुआ। उस समय श्रमिकों से दिन में 10 से 16 घंटे तक काम लिया जाता था, बिना किसी छुट्टी या उचित वेतन के।
इन शोषण के खिलाफ 1 मई को हजारों मजदूरों ने हड़ताल की। 3 मई को पुलिस ने शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की, जिसमें कई श्रमिक मारे गए।
इसके जवाब में 4 मई को हेयमार्केट स्क्वायर में एक और प्रदर्शन हुआ, जहां एक अज्ञात व्यक्ति ने बम फेंका, और जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने कई लोगों को मार दिया।
इस घटना के बाद कई मजदूर नेताओं को फांसी दी गई या जेल में डाल दिया गया। लेकिन यह आंदोलन वैश्विक श्रमिक संघर्ष का प्रतीक बन गया और 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मान्यता मिली।
भारत में मजदूर दिवस
भारत में मजदूर दिवस पहली बार 1 मई, 1923 को चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मनाया गया। यह आयोजन ‘भारतीय श्रमिक किसान पार्टी’ द्वारा किया गया था और इसके पीछे नेता थे सिंगारवेलु चेट्टियार। इस दिन को “कामगार दिवस” या “अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस” के रूप में भी जाना जाता है।
प्रत्येक वर्ष, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और राष्ट्रीय संगठन एक विषय की घोषणा करते हैं जो वैश्विक कार्यबल को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रकाश डालता है।
दुनिया भर में मजदूर दिवस व्यापक रूप से मनाया जाता आ रहा है। तकनीक और ऑटोमेशन के बढ़ते उपयोग ने पारंपरिक श्रमिक भूमिकाओं को चुनौती दी है। इसके चलते गिग वर्कर्स, फ्रीलांसरों और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने की मांग तेज हो गई है।
भारत, फिलीपींस, जापान और कई अन्य देशों में श्रमिक संगठनों ने वेतन वृद्धि, रोजगार सुरक्षा, समान कार्य के लिए समान वेतन और सामाजिक सुरक्षा की मांग करते हुए मार्च निकाले। साथ ही, महिलाओं और अल्पसंख्यक श्रमिकों के अधिकारों पर भी विशेष ध्यान दिया गया।
