आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों की बेटियां भी नहीं ले पा रही लाभ
भारती पांडे
उत्तराखंड में गरीब परिवारों की बेटियों को शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से चलाई जा रही नंदा गौरा कन्या धन योजना से कई जरूरतमंद बेटियां वंचित हैं। यहां तक कि इस योजना को अमलीजामा पहनाने में जुटी आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों की बेटियां भी इस लाभ से वंचित हैं। https://regionalreporter.in/ankita-murder-case-ankita-ke-mata-pita/
राज्य सरकार की ओर से आज यानि पांच दिसंबर 2023 को नंदा गौरा कन्या धन योजना से वंचित रही वर्ष 2009 से 2016-17 तक के 35088 बालिकाओं के लिए 57 करोड़ की धनराशि मंजूर की है। महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा संचालित इस योजना में भारी भरकम दस्तावेजों कली सूची के कारण कई जरूरतमंद परिवारों की बेटियां इस योजना का लाभ लेने से वंचित हैं।
योजना के मापदंडों के अनुसार, इसके लिए आयु 25 वर्ष से कम होनी चाहिए। लाभार्थी उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से ही इंटरमीडिएट उत्तीर्ण हो तथा वह स्थाई रूप से उत्तराखंड का निवासी हो। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्र के आवेदनकर्ता के परिवार के मुखिया की वार्षिक आय 36000रूपए तथा शहरी क्षेत्र के लिए वार्षिक आय 42000 रूपए मात्र है।
वार्षिक आय के इस मानक के अनुसार, यदि ग्रामीण क्षेत्र के लिए मासिक आय निकाली जाए, तो वह 3000 रूपए मात्र तथा शहरी क्षेत्र के लिए मासिक आय मात्र 3500 रूपए मात्र होनी चाहिए। आय का यह मानक धरातल पर समझने योग्य ही नहीं है। आज के समय में यह आय परिवार का भरण-पोषण करने लायक भी नहीं, ऐसे में यदि पति-पत्नी मजदूरी करके भी कमाएंगे, तो भी इससे अधिक आय पा सकते हैं।
आंगनबाड़ी कार्यकर्तियों की मासिक आय 9300 रूपए मासिक तथा मिनी आंगनबाड़ी में 6300 रूपए मासिक है। यह आय किसी तरह बच्चों का पालन पोषण तो कर सकती है, लेकिन बेटी की उच्च शिक्षा में मदद के लिए नाकाफी है। ऐसे में उनकी बेटियों को यदि नंदा गौरा कन्या धन योजना का लाभ मिलता, तो बड़ी राहत मिलती। ऐसे ही कई अन्य जरूरतमंद परिवार योजना के हवाई मापदंडों के कारण योजना का लाभ लेने से वंचित हैं, जहां पति की मृत्यु के कारण महिलाएं किसी तरह अपने परिवारों का पालन-पोषण कर रही हैं।
- इतनी यात्रा तो मां नंदा देवी की जात्रा में भी नहीं करनी पड़ती, जितनी इस योजना को पाने के लिए छात्राओं और उनके मां-बाप को करनी पड़ रही है।
अरविंद सिंह जियाल