सास की छाया-माया में निकली बहू की काव्यकृति ‘छैल’

कवयित्री साईनीकृष्ण उनियाल का पहला गढ़वाली काव्य संग्रह
भारती जोशी

सोशल मीडिया पर सास-बहू के मीम्स और चुटकुले तो खूब सुने होंगे, लेकिन क्या किसी ने सुना कि कोई सास किसी बहू के लिए गढ़वाली कविता लेखन और वाचन की प्रेरणा बन गई? हाल ही में विधा प्रकाशन से प्रकाशित कवयित्री साईनीकृष्ण उनियाल के पहले गढ़वाली काव्य संग्रह ‘छैल’ का विमोचन किया गया।


प्रकाशन की दुनिया में हर दिन सैंकड़ों कृतियों का प्रकाशन हो रहा है। इनमें अधिकांश पुस्तकों को लेखक अपने किसी प्रिय या प्रेरणास्रोत को अपनी कृति समर्पित करते ही हैं, लेकिन श्रीनगर (गढ़वाल) की इस कवयित्री की प्रेरणा बेमिसाल है। विमोचन अवसर पर कवयित्री साईनीकृष्ण उनियाल ने कहा कि उन्होंने बचपन से ही अपनी मां, चाची-चाचा, मामी-मामा, बुआ-फूफा और न जाने कितने ही रिश्ते-नातों को गढ़वाली बोलते सुना, लेकिन जो प्रेरणा उन्हें अपनी सास से मिली, वह सबसे अलग थी।


अपनी बात को व्याख्या देते हुए उन्होंने बेहद मार्मिक भाव से कहा कि बचपन से जिन लोगों की जुबानी गढ़वाली सुनी उनके साथ गढ़वाली में बोलने की कोशिश भी न कर सकी। मुझे डर लगता कि कहीं मेरे टूटे फूटे शब्दों का उपहास न हो, लेकिन मेरी सासू जी सिर्फ गढ़वाली ही बोलती। उन्हीं के साथ मैंने गढ़वाली में बोलने का साहस दिखाया। हमारी जब भी बात होती, सिर्फ गढ़वाली में ही होती। मुझे कभी भी भय नहीं लगा कि यदि मैं गलत बोलूंगी, तो मेरा मजाक बनेगा। धीरे-धीरे मेरा मनोबल बढ़ने लगा। मैं बोलने से आगे बढ़ गई और गढ़वाली में भी कविताएं लिखने लगी। सासूजी की छत्रछाया और माया से ही इस काव्यकृति ‘छैल’ को मैं आज सबके सम्मुख ला सकी हूं। इसीलिए पुस्तक के मुखपृष्ठ पर सासूजी का चित्र भी शामिल किया गया है और यह पुस्तक उन्हीं को समर्पित है।
साईनीकृष्ण उनियाल अपने इन शब्दों के साथ बेहद भावुक मुद्रा में दिखीं। सास से मिली प्रेरणा से मंच पर गौरवांवित बहू का यह रूप भावुक मुद्रा में और भी निखर आया।

रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
Website |  + posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: