श्रीनगर में गुलदारों का आतंक और कर्फ्यू Terror of Guldaar in Srinagar and curfew

Men eater in Uttrakhand


अनिल स्वामी
आजकल श्रीनगर (गढ़वाल) में गुलदारों की निरंतर बढ़ती सक्रियता से दहशत का माहौल है। इस बीच खिर्सू विकास खंड के ग्वाड़ गांव में गुलदार द्वारा 11साल के बच्चे की मौत और श्रीनगर शहर में 4साल के बच्चे की मौत के बाद लोग दहशत के साये में है। https://regionalreporter.in/jobs-jobs-jobs-in-uttrakhand/
जिला प्रशासन हरकत में आया है और श्रीनगर में गुलदार की धमक के बाद सायं 6 बजे से प्रातः 6 बजे तक 7 तारीख से 9 तारीख तक लगाया गया है और 7 तारीख तक स्कूलों की छुट्टी भी है।
प्रशासनिक प्रयासों के बीच कई यक्ष प्रश्न खड़े हुए हैं कि गुलदारों की इतनी बड़ी संख्या में नगरीय क्षेत्रों में चहल कदमी चिन्ता का विषय है।
लगभग श्रीनगर क्षेत्र में गुलदारों की संख्या लोक सूचना के आधार पर 12 के आस-पास बतलाई जा रही है, जो कि विभिन्न क्षेत्रों में चहल-कदमी करते दिखलाई पड़ते हैं।
यह यक्ष प्रश्न ज़िम्मेदार वन विभाग से है कि गुलदारों की यह आवक आतंक का पर्याय क्यों बन रही है।
गुलदारों की शहरी क्षेत्रों में चहल कदमी निरंतर करते रहने के आखिर क्या कारण हैं।
गुलदारों के जंगल की जगह शहरी क्षेत्रों और लगे शहरी क्षेत्रों में ठिकाने बनाने और निरंतर बढ़ती सक्रियता के क्या कारण हो सकते हैं।
यदि उनके व्यावहारिक कारण हैं, तो वन्य जीव संरक्षण के लिए कार्य करने वाले वैज्ञानिकों से निवेदन है कि इनके व्यवहार आदि पर शोध और निराकरण के ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
यह यक्ष प्रश्न है कि गुलदारों को पालना ऐसा लग रहा है जैसे कुत्तों को पालना जैसा क्यों किया जा रहा है?
बाघ संरक्षण के लिए आपके विभाग को सक्रिय भूमिका में होना चाहिए था। बाघ तो विभाग बचा नहीं पा रहा , गुलदारों की बढ़ती संख्या क्या पर्यावरण के लिए यानि कि इकोसिस्टम के लिए आवश्यक है!

बाघ-गुलदार-तेंदुओं के बीच लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने के संवैधानिक पदों पर आसीन लोग लोगों के जीवन से खिलवाड़ करना बंद करें।
सबसे जरूरी यह है कि जंगली जानवरों के प्राकृतिक आशियानों को संरक्षित करें।

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