सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर से लोगों के घर गिराए जाने को असंवैधानिक बताया है। अदालत ने कहा कि यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह अभियुक्त है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है।
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देश में बुलडोजर एक्शन काफी विवादों में रहा है। अब इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए बुलडोजर एक्शन पर रोक लगा दी है।
जस्टिस BR गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ बुलडोजर जस्टिस पर निर्णय सुनाते हुए कहा कि हमने सभी वकीलों और विशेषज्ञों के सुझाव देखे और उन पर विचार किया है। हमें लोकतांत्रिक सरकारों के दायित्व को भी ध्यान में रखा है। अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी का घर उसकी अंतिम सुरक्षा और उम्मीदें है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रैक्टिस को ‘असंवैधानिक’ करार दिया था। कोर्ट ने इस तरह की एक भी घटना को “संविधान के मूल्यों के खिलाफ” बताया है। साथ ही इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामलों में अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया है आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर दायर याचिका पर सुनवाई की थी। इस मामले में बुधवार, 13 नवम्बर को दिए गए फैसले में कहा गया कि किसी के भी घर को उजाड़ा नहीं जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि संविधान में दिए गए उन अधिकारों को ध्यान में रखा है, जो राज्य की मनमानी कार्रवाई से लोगों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को यह पता हो कि उनकी संपत्ति को बिना किसी उचित कारण के नहीं छीना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर सरकारी अधिकारी कानून हाथ में लेकर इस प्रकार का एक्शन लेते हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हमने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है। यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कैसे काम करती हैं? न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है। न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है। यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। किसी व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया का पालन किए जाने के बाद कोर्ट के पास सजा देने का अधिकार है।