डॉ. उमेश चमोला
औद्योगिकीकरण के कारण संपूर्ण विश्व प्रदूषण की चपेट में है। इससे मानवता के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। इसलिए पर्यावरणीय शिक्षा सम्पूर्ण विश्व की आवश्यकता बन चुकी है। इसी जरुरत को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों में पर्यावरणीय शिक्षा को अनिवार्य रूप से लागू करने के निर्देश दिए हैं।
देश के राज्यों के स्कूलों हेतु पाठ्यचर्या ;सर्वांगीण विकास के लिए विद्यालयों में आयोजित समस्त गतिविधियां क्या होंगी? इस पर चिन्तन हेतु राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद नई दिल्ली द्वारा विकसित दस्तावेज राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National curriculam frame work) या एन.सी.एफ. ने भी पर्यावरणीय शिक्षा को महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्वीकार किया है ।
एन.सी.एफ.कक्षा 1 से 12 तक के बच्चों के लिए पर्यावरणीय शिक्षा को अनिवार्य रूप से कार्यान्वित करने की बात करता है। बिना बोझ के पाठ्यचर्या इस दस्तावेज का फोकस बिन्दु है। अतः कक्षा 1 और 2 में पर्यावरणीय शिक्षा को पृथक रूप से लागू करने के बजाय भाषा और गणित में पर्यावरण से सम्बन्धित संबोधनों को समावेशित करने पर बल देता है। इसी प्रकार, कक्षा 3, 4 तथा 5 में आज तक चली आ रही पुस्तकों ‘विज्ञान और हमारा समाज’ के स्थान पर ‘पर्यावरणीय शिक्षा’ आधारित एक पुस्तक को लागू करने पर बल देता है। उच्च प्राथमिक स्तर कक्षा 6, 7 तथा 8 में एन.सी.एफ.के अनुसार पर्यावरणीय शिक्षा, विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दो स्वतंत्र धाराओं के रूप में की जानी चाहिए। कक्षा 9 से 12 तक पर्यावरणीय शिक्षा विभिन्न विषयों विशेषकर विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, भूगोल आदि विषयों में निहित पर्यावरणीय संबोधनों के रूप में देने की मंशा एन.सी.एफ.ने प्रकट की है।
इस प्रकार, यह दस्तावेज पर्यावरणीय शिक्षा को सभी विषयों के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करता है। हमारा पर्यावरण सामाजिक, प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक रूप से किस प्रकार स्वस्थ रहे, जब तक प्रत्येक नागरिक के मन में यह प्रश्न मंथन नहीं करेगा तब तक पर्यावरण सम्बन्धी मुसीबतों से हम पार नहीं पा सकते। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए एन.सी.एफ.सामाजिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण को पर्यावरणीय पाठ्यचर्या के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में मान्यता प्रदान करता है।
कक्षा 1 से ही बच्चा अपने चारों ओर की सामाजिक एवं प्राकृतिक पर्यावरण में निहित वस्तुओें का अवलोकन कर सके, निरीक्षण कर सके और उनके मध्य अतंर्सम्बन्धों को जान सके। इस पर विशेष बल दिया गया है। इससे बच्चों में एक ओर सामाजिकता की भावना विकसित होगी तो दूसरी ओर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रति उनके हृदय में प्रेम की भावना जागृत हो सकेगी। एन.सी.एफ.विद्यालयों में सीखने-सिखाने पर बल देते हुए पर्यावरणीय शिक्षा में चित्रकला, नृत्य एवं गायन के समावेश को महत्व देता है।
पर्यावरण हमारे चारों ओर के वातावरण, उसमें निहित जैविक ;पेड़, पौधे एवं जंतुद्ध तथा अजैविक ;निर्जीव वातावरणद्ध के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन है। अतः पर्यावरण की वास्तविक प्रयोगशाला प्रकृति है। इसीलिए पर्यावरणीय शिक्षा की नवीन दृष्टि पर्यावरण के द्वारा,पर्यावरण के बारे में तथा पर्यावरण के लिए सीखने पर आधारित है।
आज शिक्षाविदों द्वारा बच्चों के लिए स्थानीयता पर आधारित पाठ्यक्रम, पाठ्यवस्तु, पाठ्यपुस्तकों एवं शिक्षण विधियों पर बल दिया जा रहा है। आज का बच्चा पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से ही नहीं अपितु अन्य माध्यमों ;दूरदर्शन, समाचार पत्र आदिद्ध से भी जानकारी प्राप्त कर लेता है। अतः एन.सी.एफ.में निहित भावना के अनुरूप स्थानीयता पर तो बल दिया जाना चाहिए किन्तु यह स्थानीयता वैश्विक संदर्भ में हो। इस संदर्भ में “Act locally, think globally” महत्वपूर्ण विचार है। यह प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर आधारित है। इसका अर्थ है आप जब भी कोई गतिविधि स्थानीय परिवेश में कर रहे हां तो आपकी दृष्टि वैश्विक होनी चाहिए। आपकी यह सोच होनी चाहिए कि यदि ऐसी ही गतिविधि प्रत्येक जगह स्थानीय स्तर पर हो तो वैश्विक स्तर पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
एन.सी.एफ.बच्चों को स्थानीय परिवेश से वैश्विकता की ओर अग्रसर करने पर बल देता है। विशेषकर प्राइमरी स्तर के शिक्षार्थियों को उनके तत्काल माहौल (immediate environment) पर आधारित शिक्षा को पाठ्यवस्तु एवं शिक्षण विधियों के माध्यम से देने पर जोर देता है।
वर्तमान सूचना क्रांति के दौर में देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी राज्य की जैव विविधता के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इस तथ्य के मध्यनजर एन.सी.एफ.राष्ट्रीय स्तर पर जन साधारण के पहुंच वाली वेबसाइट के निर्माण का सुझाव देता है। इस वेबसाइट में देश भर के शिक्षार्थी अपने राज्य की जैव विविधता से सम्बन्धित आंकड़े दर्ज कर सकते हैं।
पर्यावरणीय शिक्षा से सम्बन्धित परियोजनाओं के परिणामों को भी इस वेबसाइट में भेजने की व्यवस्था प्रस्तावित है। इसे रिलेशनल डाटाबेस मैनेजमेन्ट सिस्टम के नाम से बंगलौर में विकसित कर लिया गया है। इस प्रकार एन.सी.एफ.पर्यावरणीय शिक्षा के महत्वपूर्ण पक्षों पर एक नई दृष्टि प्रदान करता है। इसका उद्देश्य बच्चों में स्वस्थ पर्यावरण निर्माण के प्रति संचेतना विकसित करना है। ताकि समाज, राष्ट्र एवं विश्व को पर्यावरणीय समस्याओं से दो-चार न होना पड़े।