जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से उत्तराखंड एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र : डॉ आलोक सागर गौतम

विश्व ओजोन दिवस पर एकदिवसीय वेबिनार गढ़वाल विवि में आयोजित
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो

एयरोसोल एयर क्वालिटी एण्ड क्लाइमेट चेंज सोसायटी श्रीनगर गढ़वाल द्वारा हिमालयन वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (HASPRL) भौतिकी विभाग हेमवती नन्दन बहुगुणा गढवाल विश्वविद्यालय के सहयोग से विश्व ओजोन दिवस पर एकदिवसीय वेबिनार का आयोजन किया गया।

इस प्रयोगशाला में वायु की गुणवत्ता, स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव, जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग, बिजली गिरने की घटनाएं, बारिश के पैटर्न में बदलाव, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता व मशीन लर्निंग द्वारा मौसम का पूर्वानुमान आदि पर शोध किया जा रहा है।

इस अवसर पर ओजोन परत क्षरण एवं ओजोन क्षरण के कारण पृथ्वी पर आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से होने वाले दुष्परिणामों पर व्याख्यान हुए।

सोसायटी के सचिव डॉ. आलोक सागर गौतम के निर्देशन में यह वेबिनार आयोजित किया गया। डॉ गौतम ने ओजोन परत- क्षरण एवं रोकथाम विषय पर व्याख्यान दिया, डॉ. गौतम ने भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे में अपने सेवाकाल के दौरान, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से 28वें भारतीय वैज्ञानिक अभियान के लिए दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका जाने का अवसर मिला, जहाँ उन्होंने शोध कार्य किया।

जिसमें उन्होंने अपने अंटार्कटिका अभियान से प्राप्त ओजोन के अध्ययन पर व्याख्यान दिया मुख्य वक्ता श्यामनारायण नौटियाल, असिस्टेंट प्रोफेसर रसायन विज्ञान, जी बी पंत इंजीनियरिंग कॉलेज घुड़दौड़ी ने समताप मंडल मे ओजोन के निर्माण एवं ओजोन क्षरण की क्रियाविधि, ओजोन क्षरण की रोकथाम हेतु अंतर्ऱाष्ट्रीय संधि मोंट्रियल प्रोटोकॉल एवं उत्तराखण्ड में ओज़ोन के अध्ययन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

हिमालयी क्षेत्र, जिसमें उत्तराखंड भी शामिल है, एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अधिक प्रभावित हो सकता है। ओजोन परत की कमी से हिमालयी क्षेत्र में पराबैंगनी (UV) किरणों की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे स्थानीय वनस्पति, कृषि और बर्फ का पिघलना प्रभावित हो सकता है।

उत्तराखंड में भी भारत के अन्य हिस्सों की तरह ओजोन परत की सुरक्षा के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी प्रयास चल रहे हैं। इसमें हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) और अन्य ओजोन-नाशक पदार्थों के उपयोग में कमी करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम और नीति निर्माण शामिल हैं।

ओजोन परत की कमी का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर भी पड़ सकता है। हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को पराबैंगनी किरणों से त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद, और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का अधिक खतरा हो सकता है। इसलिए, ओजोन परत संरक्षण के प्रयासों में स्वास्थ्य जागरूकता भी शामिल की जा रही है।

वातावरणीय भौतिकी प्रयोगशाला के शोध छात्र करन सिंह ने, ओज़ोन का इतिहास तथा गुड ओजोन एवं बेड ओजोन पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया।

विश्व ओजोन दिवस पर एकदिवसीय वेबिनार गढ़वाल विवि में आयोजित

डॉ गौतम ने बताया कि भौतिकी विभाग में हिमालयन वायुमंडलीय और अंतरिक्ष भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (HASPRL) लगातार सभी प्रदूषक तत्वों का मापन और शोध किया जा रहा है यह महानगरीय वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान सेवाएँ (मापन) प्रयोगशाला भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, पुणे पृथ्वी विज्ञानं मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से संचालित की जा रही है।

वेबिनार के अंत में ओजोन परत संरक्षण के उपाय पर चर्चा की गई और उपस्थिति छात्र छात्राओं द्वारा प्रश्नोत्तरी में ओजोन-नाशक रसायनों का उपयोग बंद करना, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) और अन्य हानिकारक रसायनों का उपयोग न करना, पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों का उपयोग, ऐसे उत्पादों का उपयोग करने पर जागरूकता फैलियने पर जोर दिया साथ ही लोगों को ओजोन परत के संरक्षण के प्रति जागरूक बनाने और उन्हें हानिकारक रसायनों के उपयोग से बचने के लिए प्रेरित करने पर बल दिया।

कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा यास्ती पंचभैया ने किया, तथा अंत में शोध छात्र संजीव कुमार ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस वेबिनार में गढवाल विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षक, शोधार्थी व छात्र छात्राएँ उपस्थित रहे।

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