गढ़वाल विवि के हिंदी विभाग से किया आह्वान
प्रो.उमा मैठाणी ने कहा- डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल पर लिखे शोध सुनने आएं हिंदी विभाग के विद्यार्थी
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
हिंदी के प्रथम डीलिट् डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के जन्म दिवस पर आयोजित दो दिवसीय समारोह के आयोजन में देश तथा प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से पहुंचे विषय विशेषज्ञों को सुनने के लिए गढ़वाल विवि हिंदी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष रही हिमालय साहित्य एवं कला परिषद् की संरक्षक डा.उमा मैठाणी ने स्व.बड़थ्वाल पर पढ़े जा रहे शोध अध्ययनों को सुनने का आह्वान किया। https://regionalreporter.in/fyunli-aur-vasant/

डा.उमा मैठाणी ने कहा कि गढ़वाल विवि के हिंदी विभाग से भी शिक्षक, शिक्षिकाएं और विद्यार्थी इस आयोजन में पहुंचें। उन्होंने कहा कि गढ़वाल विवि के कोर्स में डा.बड़थ्वाल के साहित्य को शामिल करने के लिए वे विवि प्रशासन की बैठकों में कई बार लड़ी हैं, लेकिन अफसोस कि स्व.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल अनिवार्य विषय के रूप में शामिल नहीं हो पाए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल अथवा डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल किसी एक के चयन का अधिकार विद्यार्थियों के पास होता। ऐसे में गढ़वाल विवि में सिर्फ वैकल्पिक पाठ के रूप में वे शामिल हो पाए, जबकि अल्पकाल में ही उनके कार्यों और साहित्य को देखते हुए उन्हें अनिवार्य विषय के रूप में शामिल होना चाहिए

उन्होंने कहा कि पीतांबर दत्त बड़थ्वाल जी ने लखनऊ विवि में अध्यापन किया था। उस समय लखनऊ विवि के शिक्षक भगवती चरण वर्मा, यशपाल जी, अमृत लाल नागर जी, महादेवी वर्मा जैसे विद्वतजनों के दर्शन किए हैं। स्व.बड़थ्वाल जी के शिष्य डा.त्रिलोकीनारायण दीक्षित मेरे गुरू रहे। कहा कि एमए में लघु शोध के लिए विशेष लेखक के रूप में मैंने कबीर को लिया था। हालांकि हमारी पढ़ाई के दौर में इलाहाबाद विवि के विद्यार्थी और बनारस विवि का सौंदर्य विख्यात था। इसके बावजूद लखनऊ विवि की अपनी गरिमा थी।

उन्होंने कहा कि डा.बड़थ्वाल ने निर्गुण साहित्य पर अपना शोध प्रबंध लिखा। कबीर बहुत साधारण व्यक्ति थे और निर्गुण भक्ति धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रवर्तक रहे। उन्होंने सबसे सरल भाव के साथ सहजता को परिभाषित किया और लिखा-
सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्हैं कोय,
जिन सहजै विषया तजै, सहज कहावै सोय।।
यानि सहज-सहज सब कहते हैं, लेकिन सभी लोग उसे समझते नहीं हैं। जिन्होंने सहज रूप से विषय-वासनाओं का परित्याग कर दिया है, उनकी यह निर्व्यसनी स्थिति ही सहज कहलाती है।
डा.उमा मैठाणी ने कहा कि कबीर के इस दोहे को डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल जी ने उतनी ही सहजता के साथ व्यवहार रूप में जिया, जितनी सहजता से कबीर ने इसे लिखा।