कार्ल मार्क्सः मजदूरों की आजादी के अग्रदूत

“दुनिया के मज़दूरों, एक हो जाओ!” इस एक पंक्ति ने न केवल किताबों के पन्नों में हलचल मचाई, बल्कि सड़कों, कारखानों और संसदों तक क्रांति की आवाज़ पहुंचाई।

यह आवाज़ थी कार्ल मार्क्स की — उस विचारक की, जिसने दुनिया को बताया कि इतिहास केवल राजाओं और साम्राज्यों का नहीं, बल्कि वर्ग संघर्ष और श्रमिकों की चेतना का इतिहास है।

आज जब हम असमानता, शोषण और आर्थिक अन्याय के नए रूपों का सामना कर रहे हैं, तब मार्क्स की सोच फिर से जीवंत होती प्रतीत हो रही है।

पारिवारिक पृष्ठभूमि और शुरुआती जीवन

कार्ल हेनरिख मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को जर्मनी के ट्रियर नगर में यहूदी परिवार में हुआ था। उनके पिता एक वकील थे और परिवार बुद्धिजीवी था।

वह आठ भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। शुरू से ही उन्हें पढ़ने-लिखने में रुचि थी, विशेषकर इतिहास, साहित्य और दर्शन में।

उन्होंने बॉन विश्वविद्यालय में पहले कानून की पढ़ाई की, फिर बर्लिन विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की।उनका पीएचडी शोध प्राचीन यूनानी दार्शनिक एपिक्यूरस और डेमोक्रिटस पर आधारित था।

प्रमुख रचनाएँ

  1. कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो (1848) – फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ लिखा गया यह घोषणापत्र समाजवादी आंदोलनों का घोषणापत्र बन गया।
  2. दास कैपिटल (1867) – पूंजीवाद की आलोचना और वर्गीय शोषण की आर्थिक व्याख्या।
  3. द पॉवर्टी ऑफ फिलोसिफी (1847), इनऑर्गेरल एड्रेस टू द इंटरनेशनल वर्किंग मैन एसोसिएशन।
  4. थीसिस ऑन फायरबाख, दि जर्मन आइडियोलॉजी, आदि ने दर्शनशास्त्र को सामाजिक यथार्थ से जोड़ा।

पत्रकारिता और निर्वासन

मार्क्स ने ‘Rheinische Zeitung’ नामक अखबार के लिए पत्रकारिता की, जहां उन्होंने राजशाही, चर्च और पूंजीपति वर्ग की आलोचना की।

उनके क्रांतिकारी लेखों के कारण उन्हें जर्मनी, फिर फ्रांस, बेल्जियम और अंततः इंग्लैंड से निकाला गया। उन्होंने अपना ज़्यादातर जीवन लंदन में गरीबी और संघर्ष के बीच बिताया।

मार्क्सवाद के स्तंभ सिद्धांत

  • ऐतिहासिक भौतिकवाद – इतिहास की गति आर्थिक संरचना और वर्ग-संघर्ष से तय होती है।
  • वर्ग संघर्ष – समाज में सदैव दो वर्ग होते हैं: शोषक और शोषित, जिनका संघर्ष परिवर्तन लाता है।
  • पूंजीवाद की आलोचना – पूंजीपति केवल लाभ के लिए काम करता है और श्रमिक के श्रम का शोषण करता है।
  • क्रांति का सिद्धांत – मजदूर वर्ग को संगठित होकर शोषण के खिलाफ क्रांति करनी चाहिए।

मार्क्स की मृत्यु 14 मार्च 1883 को लंदन में हुई। उन्हें हाईगेट कब्रिस्तान में दफनाया गया। उनकी समाधि पर लिखा है: “दुनिया को केवल समझने की नहीं, बल्कि बदलने की आवश्यकता है।”

मार्क्स की विरासत और प्रभाव

  • रूस, चीन, क्यूबा जैसे देशों में साम्यवादी क्रांतियों का बौद्धिक आधार।
  • लेनिन, माओ, चे ग्वेरा जैसे नेताओं पर गहरा असर।
  • मज़दूर यूनियनों, ट्रेड यूनियन मूवमेंट और कल्याणकारी नीतियों की प्रेरणा।

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