समदर्शी की कलम से
हिमपुत्र (हेमवती नंदन बहुगुणा) कभी भी स्वार्थी बनकर नहीं रहे, बल्कि उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों तक संघर्षशील बनकर ही स्वयं को जिंदा रखा। वे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के प्रबल समर्थकों में थे। अपने अधिकांश भाषणों में उनका जिक्र करते हुए वे कहते कि गढ़वाली ने निहत्थे पर गोली नहीं चलाई। उन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में जो कार्य किया उससे सदैव पहाड़ का सिर ऊंचा रहेगा।
उत्तराखंड-उत्तरप्रदेश की राजनीति के सशक्त कीर्तिमान रहे स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा की अनदेखी अब इस कदर होने लगी है कि उनके पैतृक गांव में तक उनकी पुण्यतिथि के समय उन्हें याद नहीं किया गया। एक समय में अविभाजित उत्तर प्रदेश और देश के प्रमुख नेताओं में गिने जाने वाले हेमवती नंदन बहुगुणा के पैतृक क्षेत्र में उनका नाम लेने वाला तक कोई नहीं है। वह भी तब जब स्वयं उनका पुत्र एक ऐसी संसदीय सीट पर विजय पताका लहरा चुका हो जिस पर गत पांच दशकों से एकमात्र राजशाही खानदान का कब्जा था।
स्व. बहुगुणा संपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र के ऐसे ज्वाजल्यमान नक्षत्र थे, जिन्होंने अपने आप को गढ़वाल का ही नहीं बल्कि संपूर्ण उत्तराखंड और पूरे देश को हमेशा ही अपना समझा। बात-बात में वे कह भी बैठते थे कि हिमालय चटक सकता है लेकिन झुक नहीं सकता। बहुगुणा की कार्यशैली विचित्र हुआ करती थी किसी भी निर्णय को लेने में वे लाग-लपेट न करते हुए सीधी बातचीत से मामला सुलझा लिया करते थे। राजनीति में अलग पहचान रखने के साथ ही वे सदा एक ही दल से नाता जोड़कर रखने में सफल रहे।
उनका स्पष्ट मानना था कि देश की अखंडता सर्वोपरि है। दल तो टूटते और बनते रहते हैं लेकिन राजनैतिक सोच ऐसी होनी चाहिए, जिससे देश खुशहाली की ओर बढ़ सके। उन्होंने राजनीति में जब भी भाई-भतीजावाद और परिवारवाद का बोलबाला देखा तो उन्होंने अपना दल ही बदल डाला लेकिन अपने दल और चरित्र को हमेशा बचाए रखा। बहुगुणा जी का व्यक्तित्व और कृतित्व हिमालय जैसा ही ऊंचा था। उन पर तंज कसने वालों को वे एक किनारे रख दिया करते जैसे उनसे कोई कुछ कह ही न रहा हो। बहुत कुछ कहने के बजाए वे कुछ कर दिखाने के समर्थक थे। उन्होंने देश व प्रदेश में जिस भी ओहदे पर कार्य किया, उसे बखूबी निभाया भी।
हिमपुत्र कभी भी स्वार्थी बनकर नहीं रहे, बल्कि उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों तक संघर्षशील बनकर ही स्वयं को जिंदा रखा। वे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के प्रबल समर्थकों में थे। अपने अधिकांश भाषणों में उनका जिक्र करते हुए वे कहते कि गढ़वाली ने निहत्थे पर गोली नहीं चलाई। उन्होंने देश को स्वतंत्रता दिलाने में जो कार्य किया उससे सदैव पहाड़ का सिर ऊंचा रहेगा। उनकी कार्यशैली ऐसी थी कि उन्हें किसी भी समस्या के समाधान के लिए दिमागी कसरत नहीं करनी पड़ती थी, बल्कि वे सटीक निर्णय ले कर काम आसान कर दिया करते थे।