डा0 महाबीर सिंह नेगी
पंचायतों में लम्बे समय तक जनप्रतिनिधि रहने व पंचायतों को अधिकार सम्पन्न बनाने के लिए लम्बे समय तक लड़ाई लड़ने के अपने अनुभव के आधार पर
24 अप्रैल को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस संविधान के 73वें संशोधन को पारित करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इससे ग्राम, ब्लाॅक एवं जिला स्तर पर पंचायती राज की व्यवस्था की गई थी। राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस पर देश के सबसे बेहतर ग्राम पंचायतों को पंचायती राज मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है।
सर्वप्रथम राजस्थान के नागौर जिले में 2 अक्टूबर, 1959 को पंचायती राज व्यवस्था अपनाई गयी थी।
73वां संवैधानिक संशोधन 24 अप्रैल, 1993 को लागू हुआ। इस प्रकार 24 अप्रैल भारत के पंचायती राज के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। 73वें संशोधन के द्वारा संविधान में भाग-9 जोड़ा गया, इसके तहत अनुच्छेद 243 से 243 (O) में पंचायतों की व्यवस्था की गयी है, इसके द्वारा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी, इसमें पंचायत के 29 विषयों को शामिल किया गया है। इसके द्वारा 29 विषयों को पंचायतों को सौंपा गया. जो अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण था. इससे ग्राम, ब्लाॅक एवं जिला स्तर पर विकास से जुड़े सभी विषय व उनसे जुड़े विभाग सम्बंधित पंचायतों के अधिकार में आ गये. संविधान संशोधन के पीछे मंसा भी यही थी. परन्तु क्या हकीकत में भी ऐसा ही है. जमीनी हकीकत कुछ और ही है. आज भी पंचायतें अपने क्षेत्र के विकास के लिए जिले के अधिकारीयों, विधायकों की विधायक निधि, सांसद निधि पर निर्भर रहने को मजबूर हैं. किसी भी अधीनस्थ अधिकारी कर्मचारी पर पंचायतों का किसी तरह का नियंत्रण नहीं है. पूर्व में पंचायतों को अधिकार देने के लिए कुछ शासनादेश हुए कुछ समय बाद दूसरे शासनादेश से पूर्व शासनादेश की मूल भावना को ही समाप्त कर दिया गया.आज यदि मनरेगा योजना को छोड़ दिया जाय तो पंचायतों के पास कुछ भी नहीं है.मनरेगा की भी क्या स्थिति है गॉव में रहने वाले लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं.पंचायतों को मजबूती का रास्ता विधानसभा व संसद से होकर ही जाता है और कोई भी सांसद विधायक पंचायतों को अधिकार सम्पन्न बंनाना अपने अधिकारों में कटौती के रूप में देखता है जिसे वह हरगिज होने नहीं देना चाहता . कुछ राज्यों ने भले इसमें कुछ हद तक सकारात्मक रुख अपनाया परन्तु वह भी बहुत सुकून देने वाला नहीं मना जा सकता.
वर्तमान स्थिति में एक ही स्थान पर एक ही योजना के लिए कई बार विभिन्न स्तरों से धनराशि प्राप्त हो रही है उसी योजना के लिए विधायक निधि, सांसद निधि, सरकारी विभाग, गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा धनराशि आवंटित की जा रही है व खर्च होना भी दिखाया जा रहा है व संबंधित पंचायत को इसकी कोई खबर तक नहीं रहती, जबकि होना यह चाहिए धनराशि किसी भी संस्था या स्तर से आवंटित हो उस योजना का मूल प्रस्ताव संबंधित पंचायत द्वारा ग्राम सभा की खुली बैठक द्वारा पारित होना चाहिए.सांसद, विधायक या सरकारी अथवा गैरसरकारी किसी भी स्तर से योजना की स्वीकृति के लिये ग्राम सभा का मूल प्रस्ताव होना आवश्यक है जिससे एक ही योजना के लिए कई स्तरों से धनराशि प्राप्त ना हो पाए. पंचायतों को अधिकार संपन्न बनाने एवं बुनियादी स्तर पर योजनाओं को तैयार करने की जिम्मेदारी यदि पंचायतों के पास रहेगी तो निश्चित रूप से क्षेत्र की प्राथमिकता के आधार पर योजनाएं बनेंगी. अन्यथा पंचायतें मात्र प्रस्ताव पास करने की संस्था बनकर रह जाएंगी.