लोक कला निष्पादन केंद्र में गांधी बोडा की अंतिम यात्रा नाटक को देख खूब गुदगुदाए दर्शक
खचाखच भरे सभागार में दर्शक मंत्रमुग्ध हुए प्रस्तुति पर
गंगा असनोड़ा
हमारे समाज में प्रत्येक सामाजिक कार्य में शराब रूपी कैंसर के प्रभाव को प्रतिबिंबित करने में गांधी बोडा की अंतिम यात्रा नाटक पूरी तरह सफल रहा। लोक कला निष्पादन केंद्र में शनिवार देर सांय मंचित हुए नाटक को वरिष्ठ लोक कलाकार एवं अंग्रेजी के पूर्व प्राचार्य डा. डी आर पुरोहित ने लिखा एवं निर्देशित किया। हिंदी एवं गढ़वाली में लिखे गए इस नाटक के चुटीले संवादों ने खचाखच भरे सभागार में दर्शकों को खूब गुदगुदाया। https://regionalreporter.in/medicne-remain-closed-srinagar-for-the-second-day/
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ब्रोनई दूतावास के हाई कमिश्नर आलोक अमिताभ डिमरी ने कहा कि शराब का बढ़ता दुष्प्रभाव हमारे समाज की जड़ों को खोखला कर गया है। मैं बड़े अर्से बाद किसी नाटक को देखकर इतना हँसा हूं। नाटक के संवादों ने सशक्त तरीके से अपनी बात समाज के सम्मुख छोड़ दी है। अब समाज को भी सोचना चाहिए कि वह किस दिशा में है? इस अवसर पर नाटक के लेखक एवं निर्देशक डा.डीआर पुरोहित ने कहा कि हमारे घर-गांवों में जिस तरह से शराब का प्रचलन शुभ कार्यों से लेकर अब अशुभ कार्यों तक पहुंच गया है, वह बेहद निंदनीय है। एक आदर्शवादी व्यक्ति, जिसने जीवन भर शराब का विरोध किया, गांव वालों द्वारा शराब के बिना उसकी अंतिम यात्रा में भी शामिल न होने की स्थिति आज कई जगह आम हो गई है। इसी कुरीति को इस नाटक के माध्यम से मंचित करने का प्रयास किया गया है।
मंच संयोजन से लेकर नाटक का एक-एक संवाद दर्शकों पर अपनी पकड़ बनाने में मजबूत रहा। साधू, धर्मू, हर्षमणि, जाग्रा जैसे पात्रों ने नाटक को जीवंत कर दिया।
विशिष्ट अतिथि प्रो.एमपीएस बिष्ट एवं प्रो.आरके मैखुरी ने भी प्रस्तुति की खूब सराहना की। नाटक में प्रियंका, भरत, कौशाम्बी, शिवम, रूबी चौधरी, रूपाली, बबीता, अर्जुन सिंह, केशर बिष्ट, अंकित भट्ट, मदनलाल डंगवाल, गौरव सिंह, शेखर, सतेंद्र सिंह नेगी ने भूमिका निभाई।
नाटक के मंचन में मुख्य रूप से डा.संजय पांडे, जयेंद्र, शिवम यादव, सुरभि सिंह, भरत कुमार, रिषभ बिष्ट व अरविंद टम्टा ने प्रकाश, संगीत व अन्य व्यवस्थाओं को सुचारू रखा।
नाटक के कुछ चुटीले संवाद
- दारू पिलाने वाले तीन तरह के कमीने होते हैं। उनमें एक वह, जो बुलाते हैं और फिर फोन नहीं उठाते। दूसरे ऐसे, जो बड़े ब्रांड की बात करके
कच्ची पिलाकर चल देते हैं और तीसरे तरह के कमीने वो होते हैं, जो घर में बुलाकर दो पेग पिलाने के बाद अपनी पत्नी के नाम का डर दिखाकर दारू की बोतल उठा ले जाते हैं। - यदि मैं बीच में नही आता, तो गांधी बोडा ने प्रधानमंत्री बनना था।
- गांधी बोडा दारू का विरोध करते थे, जबकि मैं दारू पीने-पिलाने के पक्ष में था। इसलिए उनसे जीवन भर मेरे आदर्श मतभेद रहे।
- गांधी बोडा यदि बॉर्डर पर शहीद हुआ होता, एक्सीडेंट में या कम उम्र में मरा होता, तो हम कनशेक्सन भी कर सकते थे। ये तो खुशी का मुर्दा है। फिर दारू क्यों नहीं होगी?