हेतु भारद्वाज
पुराने जमाने की बात है-एक राजा था। उसके राज में देश को भारी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा, किन्तु खजाने के वजीर की चतुराई से प्रजा को उस आर्थिक संकट का आभास तक न हो पाया। खजाने के वजीर ने एक-एक पाई को किफायत से खर्च किया। यहां तक कि राजा को भी अपव्यय नहीं करने दिया। उसने राजा की शान-शौकत के सारे उत्सव बंद कर दिए पर राजा संकट को जानता था। इसलिए उसने खजाने के वजीर के किसी कदम का विरोध नहीं किया। इस तरह खजाने के वजीर की नीति- निपुणता ने देश को उस आर्थिक संकट से उबार लिया।
समय बीत गया। राजा बूढ़ा हो गया। खजाने का वजीर भी बूढ़ाहो गया तथा उसने अपना पद छोड़ दिया। राजा ने अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठा दिया। राजकुमार बहुत समझदार था। राज्य संभालते ही उसे पुराने वजीर की याद आई। वह एक शाम अकेला बूढ़ा वजीर के पास पहुंचा और उसने वजीर के पैर स्पर्श किए। वजीर अपनी झोपड़ी में एक पुस्तक पढ़ रहा था। उसने राजकुमार को आशीर्वाद दिया और पूछा,’’ कैसे आना हुआ राजन्?’’
’’मैं एक निवेदन लेकर आपके पास आया हूं’’, राजकुमार ने विनीत भाव में कहा।
’’कहिए।’’
’’आप राजदरबार चलिए और खजाने के वजीर के पद को सुशोभित कीजिए’’ बूढ़ा हंसा और बोला, ’’राजन! मैं बूढ़ा हो चला हूं। अब मुझमें कार्य करने की क्षमता नहीं रह गई है। आप यह कार्य किसी सुयोग्य पात्र को सौंपें।’’
’’मेरी दृष्टि में इस काम के लिए आपसे योग्य व्यक्ति राज्य में कोई नहीं है’’, राजकुमार ने अपनी बात रखी।
’’ऐसा नहीं है राजन्। देश बहुत बड़ा है। आप योग्य पात्र खोजिए, अवश्य मिल जाएगा।’’
’’नहीं आदरणीय, मुझे आपका सहयोग चाहिए। आप मेरे निवेदन को स्वीकार करें’’, राजकुमार ने जिद की।
’’लेकिन मेरे मरने पर तो आपको दूसरा आदमी तलाशना ही होगा।’’
’’ऐसी अशुभ बातें क्यों करते हैं? आप खजाने को संभालें, मैं चाहता हूं कि देश को नई एवं सुदृढ़ आर्थिक हैसियत प्राप्त हों।’’
‘‘यह काम और लोग भी कर सकते हैं, शायद मुझसे बेहतर कर सकते हैं।’’ ’’नहीं, आपके सिवा इस काम को कोई नहीं कर सकता।’’ ’’एक बात कहूं राजन्। यदि देश एक व्यक्ति के बिना नहीं चल सकता तो देश को डूबने से कोई नहीं बचा सकता। आप देश के मनीषियों का सम्मान करना सीखें’’, कहकर बूढ़ा पुस्तक पढ़ने में लीन हो गया।