आजीवन सामाजिक सरोकारों को समर्पित व्यक्तित्व थे नौटियाल

अरुण कुकसाल

अगस्त, 1981 की कोई तारीख रही होगी, देर शाम तक श्रीनगर (गढ़वाल) में मदन मोहन नौटियाल जी के उत्तराखण्ड वर्कशाप के गुटमुटे कमरे के अन्दर और बाहर कई युवा तीखी बहस में उलझे थे। मुद्दा था पहाड़ से मैदानों की ओर जाने वाले वनों की लकड़ी के सिलीपरों से भरे ट्रकों को कैसे रोका जाय?

उन युवाओं के पास पहाड़ से नदियों या फिर सड़क मार्ग से वैध और अवैध रूप से मैदान की ओर जा रही लकड़ियों का पुख्ता विश्लेषण था। सभी के तर्क इस पर केन्द्रित थे कि हमारे जंगलों की बेशकीमती सम्पदा को कैसे लूटा जा रहा है। स्थानीय समाज को इससे होने वाले आर्थिक नुकसान के आंकड़े हम सबको चैंका रहे थे।

राजेन टोडरिया, चन्द्रमोहन पंवार, ललिता प्रसाद भट्ट और अनिल स्वामी की जिद थी कि आज रात से ही ट्रकों के पहिये को जाम करने का ऐलान कर दिया जाय। लेकिन, मदन मोहन नौटियाल जी की सलाह पर तय हुआ कि प्रशासन और आम जनता को सूचित करने के बाद ही स्थानीय वन उपजों को ले जाने वाले वाहनों का चक्का जाम किया जायेगा। लेकिन, होगा रात 12 बजे से ही।

निर्धारित रात को श्रीनगर के आस-पास में जहाँ-तहाँ खड़े ट्रकों में सोये चालकों/कण्डक्टरों को जगाने पर एक कण्डक्टर ने झुंझला कर कहा कि चक्काजाम करना था तो सड़कों के मोड़ों पर लिखते तब तो हमें पता चलता। अखबार/पर्चे/ पोस्टर हमारे किस काम के? परन्तु, वनों से ले जा रही लकड़ी के नफे-नुकसान पर उन्हें समझाने के बाद सैकड़ों की संख्या में ड्रायवरों और कण्डक्टरों ने छात्रों को पूरे 40 घंटे के चक्काजाम में बड़-चढ़ कर साथ दिया।

अगली दोपहर तक वनों की लकड़ी ऋषीकेश की ओर ले जाते सैकड़ों ट्रकों की लाइन श्रीनगर से धारीदेवी तक लग गई थी। मजबूरन, सरकार को वन उपजों को ले जाने पर किसी हद तक लगाम लगी थी। इस पूरे आन्दोलन का नेतृत्व मदन मोहन नौटियाल जी ने किया था।

उस दौर में, मदन मोहन नौटियाल जी के वर्कशाप वाला कमरा देर शाम तक हम युवाओं के आपसी विचार-विमर्श का नियमित केन्द्र होता था। गढ़वाल विश्वविद्यालय एवं अन्य शैक्षिक संस्थानों तथा सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय युवाओं का यह रोज का कण्डारी टी स्टाल की तरह वैचारिक अड्डा बन गया था।

बात है, विगत शताब्दी में सत्तर के दशक की। एक युवा आटोमोबाइल इंजीनियर अपने व्यवस्थित और प्रतिष्ठित कैरियर को छोड़कर सामाजिक आन्दोलनों का हिस्सा बन गया। जीवकोपार्जन के लिए श्रीनगर (गढ़वाल) में उत्तराखण्ड वर्कशाप का संचालन उसने प्रारम्भ किया। परन्तु यह केवल जीवकोपार्जन का ही माध्यम था। जीवन का ध्येय तो इस पहाड़ के सर्वागींण विकास के लिए एक सुविचारित राजनैतिक व्यवस्था को कायम करने में अपने को समर्पित करना था।

मदन मोहन नौटियाल जी ही वे युवा थे। उस काल में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय सड़क मार्ग पर श्रीनगर में संचालित उत्तराखण्ड वर्कशाप की धाक थी। परन्तु, नौटियाल जी कारोबारी न होकर सामाजिक सरोकारी थे। लिहाजा, व्यवसाय से ज्यादा सामाजिक गतिविधियों में उनकी उपस्थिति रहती थी।

उत्तराखण्ड युवा मोर्चा (1976) और उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (1979) के वे संस्थापक सदस्य बने। (ज्ञातव्य है कि, उत्तराखण्ड राज्य परिषद (नैनीताल, 1973) और उत्तराखण्ड युवा मोर्चा (श्रीनगर गढ़वाल,1976) के साझे प्रयासों से उत्तराखण्ड क्रान्ति दल (मसूरी, 25 जुलाई, 1979) का गठन हुआ था।)

मदन मोहन नौटियाल उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के प्रथम केन्द्रीय महासचिव बनाये गए। इससे पूर्व विभिन्न संगठनों द्वारा पृथक राज्य निर्माण हेतु आयोजित बद्रीनाथ से दिल्ली वोट क्लब की पैदल यात्रा (1978) में वे शामिल रहे। वे उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के 1980 एवं 1991 में लोकसभा प्रत्याशी और 1990 में विधान परिषद प्रत्याशी रहे।

मदन मोहन नौटियाल जी की यह वैचारिक परिपक्वता ही थी कि जनवरी, 1987 ‘उत्तराखण्ड प्रदेश क्यों…? पुस्तक उनकी प्रकाशित हुई। उत्तराखण्ड राज्य कैसे प्राप्त किया जाए और उसका स्वरूप कैसा हो? इस पर व्यापकता और गहनता से इसमें विचार किया गया। लिहाजा, यह महत्वपूर्ण किताब खूब चर्चित हुई। और, जनवरी, 1994 को इसका दूसरा संस्करण भी प्रकाशित हुआ था।

उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के परिपेक्ष्य में लिखी यह शुरुआती पुस्तक है। लेकिन, आज भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है।

https://regionalreporter.in/madan-mohan-nautiyal-was-the-leader-of-mass-movements/ https://youtu.be/kqAhhGgJPzE?si=3U2gq39bwoEpTjrJ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: