नीलिमा भट्ट
एक और हम दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ नागरिकों के जीवन जीने और स्वतंत्रता के अधिकारों को सीमित कर रहे हैं। कोई भी व्यक्ति किसके साथ जीना चाहता है या लोकतंत्र में किसे अपना प्रतिनिधि चुनना चाहता है, यह उसका अपना अधिकार है।भारतीय संविधान कहता है क़ि आप एम पी, एम. एल. ए. वोट देकर खुद चुन सकते हैं, लेकिन यू सी सी कहता है क़ि अपने चुने हुए साथी के साथ रहने के लिए आपको माँ बाप की अनुमति से रजिस्ट्रेशन करना होगा। https://regionalreporter.in/list-of-bjp-candidates-from-up-released/
यह बात प्राकृतिक न्याय क़े सिद्वान्त के खिलाफ़ है। हम सभी जानते हैं कि जिस देश में प्रेम करने वालों के खिलाफ आनर किलिंग हो, जहाँ प्रेम करने वालों के ख़िलाफ़ खाफ पंचायत बैठ जाती हों वहां अपने साथी के साथ रहने के लिए अनुमति कुछ बात समझ नहीं आ रही।
जहाँ दुनियां आज महिलाओं के अपने शरीर पर खुद के अधिकार की बात कह रही हैं और मैरिटल रैप जैसे मुद्दों पर भी महिला अधिकारों की बात हो रही है, वहीं यह कानून रजिस्ट्रेशन और अनुमति जैसी दकियानूसी बात कहकर महिलाओं की निजता को सार्वजानिक करने के प्रस्ताव ला रहे हैं। इस तरह यह कानून का मसौदा महिलाओं के लिए न्याय, समानता और लोकतान्त्रिक अधिकारों पर कुठाराघात है।LGBTQIA+ को तो यह मसौदा पहचान ही नहीं रहा है। @highlight, @followers

















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