गंगा असनोड़ा थपलियाल
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के पन्नों को टटोलते हुए बी. मोहन नेगी के बनाए रेखाचित्रों को भला किसने न देखा होगा! पिछले तीन दशकों से उनके रेखाचित्र पत्र, पत्रिकाओं, पुस्तकों में प्रकाशित कविताओं, कहानियों व लेखों को जीवंत बनाते रहे हैं। उनके रेखाचित्र व कोलाज सैकड़ों पत्रिकाओं, स्मारिकाओं व पुस्तकों के आवरणों के रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। रेखांकन व चित्रकारी करने के अलावा बी.मोहन नेगी की कई अभिरुचियां उनके व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाती हैं।
कला के प्रति श्री नेगी की अभिरुचि व साधना ने उनको राज्य ही नहीं अपितु देश में रेखांकन करने वालों में एक अभीष्ट पहचान दी है। उनकी यह साधना 45 साल पुरानी है, जिसकी शुरुआत देहरादून से हुई। समीप चक्खूवाला में, जहां वे रहा करते थे, वहीं सर्वे ऑफ इन्डिया के एक ड्राफ्ट्समैन घनश्याम गैरोला भी रहते थे। जिनको चित्र बनाने का बड़ा शौक था। गैरोला जी को चित्र बनाते देख उनके दिल में कला के प्रति प्रेम जागा और चित्र बनाने लगे। उनके चित्रों को देख गैरोला जी ने उनको उत्साहित किया। फिर क्या था? 14 वर्षीय बी. मोहन देवी-देवताओं के चित्र बनाने लगे। इनका उपयोग कहॉं करते, इसलिये उनके साथियों ने इनका इस्तेमाल रामलीला में करने का निश्चय किया।
इस बीच उनको डाकघर में नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने से उनकी व्यस्तताऐं बढ़ गई किन्तु कला के प्रति उनका समर्पण जारी रहा। पत्र पत्रिकाओं को पढ़ने का शौक था। जिनमें रेखांकन देखने को मिलते। इसलिये उन्होंने चित्रों के साथ-साथ रेखांकन बनाना आरम्भ किया। नौकरी के बाद उनके पास जो भी वक्त होता, वे इस काम में लगाते। आरम्भ में तो उन्होंने जो रेखांकन किया उसे मित्रों को दिखाते और पहले अपने ही पास रखते। तदोपरान्त मित्रों के सुझाव पर वे अपनी कला अभिव्यक्तियों को पत्र-पत्रिकाओं में भेजने लगे। वे प्रकाशित होने लगी, तो यह सिलसिला आरम्भ हो गया। यह क्रम अब उनके सेवानिवृत्त होने के बाद भी जारी है।
रेखांकन करना कोई आसान काम नहीं है। खाली कागज पर कुछ भी उकेरने के लिए आपके मन में विचार होने चाहिए। पत्र- पत्रिकाओं को टटोलना होता है, पढ़ना होता है। विचारों को चित्र में किस प्रकार से अभिव्यक्ति दी जाय, ताकि वह प्रभावी और विषय सम्मत हो। यह रेखांकन का मूल मन्त्र है। सृजनशीलता के धनी बी.मोहन नेगी में यह सब कुदरतन है। थीम पता लगी नहीं कि मन में पैदा हुए विचार चित्र के रूप में कूची या पेन से कागज में यन्त्रीकृत ढंग से उतरने लगते हैं और रेखाचित्र पूरा।
चित्रकार बी.मोहन नेगी के कई हजार रेखांकन क्षेत्रीय, आंचलिक व राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें नवनीत, सारिका, पहल, कथादेश, हंस, इन्द्रप्रस्थ भारती, पाखी, आजकल, अक्षरपर्व जैसी लब्ध प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपे व छप रहे हैं तो उत्तराखण्ड के अनेक साप्ताहिक, पाक्षिक पत्रों के अलावा राज्य की अनेकानेक पत्रिकाओं में उनके रेखांकन, कोलाज, कार्टून छपते रहे हैं।
पत्र-पत्रिकाओं के लिए रेखांकन करने के अलावा उनके कई अन्य शौक हैं। मसलन कविता पोस्टर, पेपरमेसी सामग्री व मुखौटे बनाना उनकी अन्य रचनात्मक अभिरुचियां हैं। इनमें से कविता पोस्टर बनाने में उनका कोई जवाब नहीं है। छू लेने वाली कविताओं को चुनकर पोस्टर में देना व कविता के भावों का चित्रांकन करना उनकी मुख्य विशेषता है। अब तक वे चुनिन्दा कविताओं को लेकर 1000 से भी अधिक कविता पोस्टर बना चुके हैं, जो विविध विषयों पर आधारित हैं। उन्होंने ये कविता पोस्टर मात्र हिन्दी कविताओं पर ही नहीं अपितु गढ़वाली, कुमाऊंनी, नेपाली, बंगला, जौनसारी, रवांल्टी भाषा की कविताओं पर भी बनाए हैं। उन्होंने कई चित्र, भोजपत्र पर भी बनाए हैं किन्तु उनकी उपलब्धता न होने से यह काम वे जारी नहीं रख सके। भोजपत्र पर चित्रांकन को लेकर दूरदर्शन द्वारा सन् 1992 में उन पर एक कार्यक्रम ‘‘फेस इन द क्राउड’’ प्रसारित किया था। उनके इन कविता पोस्टरों को लेकर उनकी प्रदर्शनियां दिल्ली, मुम्बई, देहरादून, लखनऊ, कोटद्वार, मसूरी, पौड़ी, मालकोटी, आदिबदरी नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, लैंसडौन, रामनगर, उत्तरकाशी, हल्द्वानी, टिहरी, श्रीनगर आदि नगरों में लग चुकी हैं। बी.मोहन नेगी कोलाज बनाने में भी उतने ही माहिर हैं, जितने रेखांकन में। पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न कतरनों को सहेज कर उनको कोलाज के रूप देना उनकी एक विशेषज्ञता है। उनके कोलाज पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पाते रहे हैं।
श्री नेगी को कई चीजों के संग्रहण का भी शौक है। डाक विभाग में सेवारत रहे श्री नेगी डाक टिकट एकत्र करने का शौक भी रखते हैं। वे पिछले बीस साल से इस काम को कर रहे हैं। उनके संग्रह में आज हजारों डाक टिकटों व प्रथम दिवस आवरण है। इन टिकटों में कई दुर्लभ टिकट भी हैं। विभिन्न देशों के सिक्के व मुद्रायें जमा करने का भी उनका शौक है। गढ़वाली पुस्तकों व पत्रिकाओं को संग्रह करने का उनका शौक है। गढ़वाली साहित्य में शायद ही कोई ऐसी कोई किताब हो, जो उनके संग्रह में न मिले।
बी.मोहन नेगी, मौलाराम व टैगोर की चित्रकला से प्रभावित रहे हैं। टैगोर के अनेकों चित्रों को देखने के अलावा उनका साहित्य भी उन्होंने पढ़ा है। उनके अलावा उन्होंने भारत के अनेक चित्रकारों की कला को देखा व उनका अध्ययन किया है। श्री नेगी महज अपनी प्रदर्शनियां ही नहीं लगा चुके हैं बल्कि कई कला सम्बन्धित प्रदर्शनियों को लगाने का भी उनको मौका मिला है। इस लम्बी साधना के लिए बी.मोहन नेगी कई जगह सम्मानित किए जा चुके हैं। इनमें हिमगिरी सम्मान ;देहरादून, रोटरी क्लब एवार्ड ;पौड़ी, देवभूमि सम्मान ;दिल्ली, जयदीप सम्मान ;गोपेश्वर, लक्ष्मी प्रसाद नौटियाल सम्मान ;उत्तरकाशी, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल सम्मान ;देहरादून, छुंयाल सम्मान ;पौड़ी, मोनाल सम्मान ;लखनऊ, भारत कैसेट सम्मान ;पौड़ी आदि हैं। इसके अतिरिक्त राज्य के अनेक पर्यटन मेलों में वे भी सम्मानित हो चुके हैं। वे चाहते हैं कि राज्य के कलाकारों के जो भी चित्र विभिन्न स्थानों में लगे या बिखरे हैं, उनके रिप्लिका या मूल चित्रों को लेकर एक आर्ट्स दीर्घा सांस्कृतिक नगरी पौड़ी में बन सके, तो इससे लोगों को उनके चित्रों को देखने का मौका मिल सकेगा और नगर का पर्यटन नक्शे पर औचित्य सिद्ध कर सकेगा। अफसोस यह कि इतने लम्बे अनुभव के बावजूद सरकार ने कभी भी उनकी सृजनशीलता का लाभ नहीं उठाया है।
(बी. मोहन नेगी उत्तराखण्ड के प्रसिद्द चित्रकार रहे हैं। जनसरोकारों से जुड़ी कविताओं पर उनके द्वारा बनाये गये जन पोस्टर तथा रेखाचित्रों के लिए उन्हें खासी प्रसिद्दी मिली। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी रचनात्मकता तथा विभिन्न आयोजनों में सजी उनकी कविता पोस्टर उनकी रचनाधर्मिता की याद दिलाते हैं।)