Supreme Court Decision: मुस्लिम महिलाएं भी गुजारा भत्ते की हकदार

रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो

बुधवार, 10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सुनवाई करते हुए कहा कि, कोई तलाकशुदा मुस्लिम महिला आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-125 के तहत अपने शौहर से गुजारा भत्ता मांगने की हकदार है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून हर धर्म की महिलाओं के लिए लागू होता है।

जानें क्या है सीआरपीसी की धारा-125
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125, संहिता के सबसे अधिक इस्तेमाल और चर्चित प्रावधानों में से एक है। इस संहिता में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति जिसके पास अपना भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन हैं, वह पत्नी, बच्चों और माता- पिता को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता, यदि वे अपना भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हैं।

विस्तार
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, तेलंगाना हाईकोर्ट ने मोहम्मद अब्दुल समद को अपनी तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 10 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने के आदेश दिया था, जिसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वह एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है और उसे मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों को लागू करना होगा।

https://youtu.be/e3cZ8ynvoV0?si=yJKbTn_oq7W71U2t

भरण.पोषण दान नहीं, बल्कि शादीशुदा महिलाओं का अधिकारः सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जाॅर्ज मसीह ने इस मामले पर सुनवाई की और कहा कि, सीआरपीसी की धारा-125 के दायरे में मुस्लिम महिलाएं भी आती हैं. यह धारा पत्नी के भरण-पोषण के कानूनी अधिकार से संबंधित है.

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, कि हम इस आपराधिक अपील को खारिज कर रहे हैं कि धारा-125 सभी महिलाओं के संबंध में लागू होगी, न कि केवल शादीशुदा महिलाओं पर, न्यायालय ने यह भी कहा कि भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि शादीशुदा महिलाओं का अधिकार है और सभी शादीशुदा महिलाएं इसकी हकदार हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म की हों. शीर्ष अदालत ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली मोहम्मद अब्दुल समद की याचिका खारिज कर दी.

क्या नियम है मुस्लिम महिलाओं के लिए
मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं मिल पाता है। अगर गुजारा भत्ता मिलता भी है तो सिर्फ इद्दत तक। इद्दत एक इस्लामिक परंपरा है, जिसके अनुसार, अगर किसी महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया तो वो महिला इद्दत की अवधि तक शादी नहीं कर सकती है। इद्दत की अवधि तीन महीने तक रहती है।

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