डा.बड़थ्वाल पर श्रीनगर (गढ़वाल) में पढ़े कई विशेषज्ञों ने शोध
केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा तथा हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् ने किया आयोजन
रीजनल रिपोर्टर ब्यूरो
केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा (उप्र) तथा हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ गढ़वाल विवि के सीनेट हॉल में किया गया। इस मौके पर विभिन्न विषय विशेषज्ञों ने डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के जीवन, साहित्य, दर्शन, कार्यक्षेत्र सहित विभिन्न पक्षों पर अपने अध्ययन को सार्वजनिक किया। इस अवसर पर डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के खोए साहित्य को संजोने, ढूंढ़े जाने तथा प्रकाशित किए जाने तथा उनके कार्यों पर व्याख्यान माला आयोजित किए जाने के सुझाव प्रस्तुत किए गए। https://regionalreporter.in/murder-mystery-kash-ankita-ka-man/
कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का शुभारंभ करते हुए मुख्य संयोजक साहित्यकार डा.देवेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल का साहित्य विरोध और पक्षधरता का अद्भुत संगम है। उन्होंने गोरखवाणी का वैज्ञानिक विश्लेषण किया तथा उसे मील का पत्थर साबित किया। 100 से अधिक पत्र उपलब्ध हैं, जिनको पुस्तकाकार करने का प्रयास है।
डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल पर शोधकार्य करने वाले पहले शोधार्थी डा.गणेशमणि त्रिपाठी ने कहा कि डा.बड़थ्वाल ने सूक्तिपरक वाक्यों का अधिकाधिक प्रयोग अपने लेखन में किया। उनके साहित्य पर सबसे पहले भक्तदर्शन जी ने लिखा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी तथा हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् के संरक्षक विमल बहुगुणा ने की। राजकीय बालिका इंटर कॉलेज की छात्रा खुशी आर्य ने डा.बड़थ्वाल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए शोध परिचर्चा में प्रतिभाग किया।
द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि राजनीतिशास्त्री प्रो.रामानंद गैरोला ने कहा कि डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने अल्पजीवी होकर भी शताब्दियों का कार्य किया। उन्होंने कहा कि वे निर्गुण भक्ति धारा के महान अन्वेषक तथा साहित्यकार के रूप में स्थापित हुए।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एवं डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के पारिवारिक सदस्य प्रमोद बड़थ्वाल ने कहा कि स्व.बड़थ्वाल बचपन से ही अध्ययन की अभिरूचि के व्यक्ति थे। इसलिए वे अध्ययन के लिए चुपचाप कोई कोना तलाश लेते। उन्होंने कहा कि आज मोटे अनाजों पर वृहद चर्चा सरकारी स्तर पर हो रही है, लेकिन स्व.बड़थ्वाल ने अपने जीवन काल में मोटे अनाजों पर भी काफी कुछ लिखा है। हालांकि उनका लिखा साहित्य खोजा जाना चाहिए। उनके पत्रों के आधार पर यह मालूम होता है कि उन्होंने किन-किन विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गढ़वाल विवि में भूगोल विभाग के प्रो.मोहन पंवार ने कहा कि जब पीतांबर दत्त बड़थ्वाल का जन्म हुआ, तब भारत में साक्षरता का प्रतिशत मात्र 5.4 था। आजादी के समय तक भी यह बहुत आगे नहीं बढ़ पाया था। वे एक युगदृष्टा थे, जिन्होंने दुरूह कठिनाइयों को पार करके पाली से बनारस तक का सफर किया और साहित्य जगत में ऐसा कार्य किया, जो मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने चिरन्तन विकास का एक ऐसा पैमाना तय किया है, जिस पर व्याख्यान माला का आयोजन किया जाना चाहिए। ताकि नई पीढ़ी उनके लेखन और व्यक्तित्व से प्रेरणा ले सके।
इस अवसर पर हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् के संरक्षक एडवोकेट कृष्णानंद मैठाणी, संगठन के अध्यक्ष प्रसि( कवि नीरज नैथानी, माधुरी नैथानी, पूनम रतूड़ी, मेनका सुशांत, देवेंद्र उनियाल, जयकृष्ण पैन्यूली, वरिष्ठ साहित्यकार डा.विष्णुदत्त कुकरेती, उमा घिल्डियाल, रेशमा पंवार, उपासना कर्नाटक भट्ट, आखर के संस्थापक संदीप रावत, देवेंद्र नैथानी, गंगा आरती समिति के प्रेम बल्लभ नैथानी सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी व विभिन्न संगठनों के लोग मौजूद थे।
छत्तीसगढ़ी नृत्य पर मोहित हुए दर्शक
डा.पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के जन्म दिवस पर हुए आयोजन के दौरान छत्तीसगढ़ से अपना शोध अध्ययन लेकर पहुंची डा.पूनम संजू साहू ने छत्तीसगढ़ी लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। इस मौके पर आयोजन समिति की ओर से डा.पूनम संजू साहू को श्री राजराजेश्वरी सम्मान से सम्मानित भी किया गया।